इसरो के वैज्ञानिकों के मुताबिक ऐसा संभव है लेकिन इसके लिए हम जो भी कदम उठाएंगे वो पुरे मिशन को भी खतरे में डाल सकता है। खतरे का खिलाड़ी बनेगा ऑर्बिटर इस योजना के तहत इसरो को अपने ऑर्बिटर को लैंडर विक्रम के करीब लाना होगा। इसके लिए इसरो को ऑर्बिटर की कक्षा बदलने पड़ेगी। लेकिन इसरो के पास यही एक अंतिम विकल्प है।
इसके लिए ऑर्बिटर की भी हार्ड लैंडिंग करानी पड़ सकती है। ये भी हो सकता है कि ऑर्बिटकर को चांद की कक्षा से 100 किलोमीटर की दूरी को कम कर 35 किलोमीटर कर दी जाए। ताकि ऑर्बिटर लैंडर विक्रम के करीब पहुंच सके।
वैज्ञानिकों का कहना है कि अगर इसरो इस प्लान पर अमल करता है तो ऑर्बिटर लैंडर के बहुत करीब पहुंच जाएगा। ऐसे में उसकी अच्छी तस्वीर ले पाएगा। इतना ही नहीं अपपरी रेडियो व व तरंगों के माध्यम से लैंडर विक्रम से संपर्क भी स्थापित कर पाएगा। जो दूरी होने की वजह से ऑर्बिटर नहीं कर पाया है।
हाई फ्रिक्वेंसी वाले सिगनल से नहीं हो पा रहा है संपर्क फिलहाल लैंडर विक्रम से संपर्क साधने के लिए उच्च आवृत्ति वाले सिग्नल छोड़े जा रहे हैं जिन्हें लैंडर में लगे उपकरण रिसीव कर सकते हैं। ऐसा इस उम्मीद में किया जा रहा है कि लैंडर के एक या एक से अधिक उपकरण इन संकेतों को पकड़कर प्रतिक्रिया व्यक्त कर सकें।
क्या होगा नुकसानदायक कुछ दिन पहले वैज्ञानिकों की एक सोच सामने आई थी कि क्यों न ऑर्बिटर की कक्षा घटाई जाए जिससे लैंडर के वह ज्यादा करीब से गुजर सकेगा। हालांकि इसमें ज्यादा ईंधन खर्च होने की आशंका भी है। इससे ऑर्बिटर की आयु कम हो सकती है।