इन चौंकाने वाली जानकारियों में सबसे बड़ी जानकारी है लैंडर विक्रम की। इस जानकारी ने दुनियाभर का ध्यान अपनी तरफ खींचा है। दरअसल लैंडर विक्रम की लैंडिंग से कितने वक्त पहले तक वो ठीक तरह से काम कर रहा था, इसको लेकर इसरो चीफ बड़ी जानकारी दी है।
इसरो चीफ ने कहा है कि पूरा सिस्टम चांद की सतह से 300 मीटर दूर तक पूरी तरह काम कर रहा था।’ यानी अब भी जब लैंडर विक्रम की हार्ड लैंडिंग हुई तो उससे चंद सैकंड पहले तक उसके सभी सिस्टम वर्क कर रहे थे।
इसका मतलब लैंडर विक्रम से संपर्क संभव
ऐसे में दुनियाभर की स्पेस एजेंसियों को उम्मीद है कि लैंडर विक्रम की हालत अब भी ठीक होगी। सिवन के बयान के मायने निकाले जाएं तो ये संभावना अब भी बनी हुई है कि लैंडर विक्रम से कभी भी संपर्क हो सकता है।
ऐसे में दुनियाभर की स्पेस एजेंसियों को उम्मीद है कि लैंडर विक्रम की हालत अब भी ठीक होगी। सिवन के बयान के मायने निकाले जाएं तो ये संभावना अब भी बनी हुई है कि लैंडर विक्रम से कभी भी संपर्क हो सकता है।
कीमत डेटा अब भी उपलब्ध
सिवन ने कहा है कि हमारे पास बेहद कीमती डेटा उपलब्ध है। मैं आप लोगों को भरोसा दिलाता हूं कि भविष्य में इसरो अपने अनुभव और तकनीकी दक्षता के जरिए सॉफ्ट लैंडिंग का हरसंभव प्रयास करेगा।
इसरो के 50 साल पूरे होने के मौके पर के. सिवन ने आईआईटी दिल्ली में आयोजित एक कार्यक्रम में यह बात कही।
जम्मू-कश्मीर और लद्दाख के अलग होने के बाद सामने आया नया नक्शा, देख कर रह जाएंगे दंग
सिवन ने कहा है कि हमारे पास बेहद कीमती डेटा उपलब्ध है। मैं आप लोगों को भरोसा दिलाता हूं कि भविष्य में इसरो अपने अनुभव और तकनीकी दक्षता के जरिए सॉफ्ट लैंडिंग का हरसंभव प्रयास करेगा।
इसरो के 50 साल पूरे होने के मौके पर के. सिवन ने आईआईटी दिल्ली में आयोजित एक कार्यक्रम में यह बात कही।
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चेस-2 से होगा फायदा
भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी ने कहा कि चेस-2 पेलोड एक न्यूट्रल मॉस स्पेक्ट्रोमीटर-आधारित पेलोड है, जो 1-300 एएमयू (एटॉमिक मॉस यूनिट) की रेंज में लुनर न्यूट्रल एक्सोस्फीयर में घटकों का पता लगा सकता है।
भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी ने कहा कि चेस-2 पेलोड एक न्यूट्रल मॉस स्पेक्ट्रोमीटर-आधारित पेलोड है, जो 1-300 एएमयू (एटॉमिक मॉस यूनिट) की रेंज में लुनर न्यूट्रल एक्सोस्फीयर में घटकों का पता लगा सकता है।
फिर रात के आगोश में चांद, नासा फिर भेजेगा एलआरओ
चांद एक बार फिर रात से घने साये में पहुंच गया है। ऐसे में इस दौरान चांद से आई तस्वीरों का विश्लेषण किया जा रहा है। इसरो और नासा के वैज्ञानिक अपनी-अपनी तस्वीरों को मिलाकर उसका विश्लेषण कर रहे हैं, ताकि किसी ठोस नतीजे पर पहुंचा जा सके। नासा 10 नवंबर एक बार फिर चांद की उसी सतह पर एलआरओ भेजेगा जहां लैंडर विक्रम की हार्ड लैंडिंग हुई थी।
चांद एक बार फिर रात से घने साये में पहुंच गया है। ऐसे में इस दौरान चांद से आई तस्वीरों का विश्लेषण किया जा रहा है। इसरो और नासा के वैज्ञानिक अपनी-अपनी तस्वीरों को मिलाकर उसका विश्लेषण कर रहे हैं, ताकि किसी ठोस नतीजे पर पहुंचा जा सके। नासा 10 नवंबर एक बार फिर चांद की उसी सतह पर एलआरओ भेजेगा जहां लैंडर विक्रम की हार्ड लैंडिंग हुई थी।
औद्योगिक क्षेत्र में वरदान
चांद पर जिस गैस का पता चला है वो औद्योगिक क्षेत्र के लिए वरदान साबित हो सकती है। आर्गन गैस का इस्तेमाल औद्योगिक क्षेत्र के कामकाज में अधिक होता है। किसी भी चीज को संरक्षित रखने में मददगार
यह फ्लोरेसेंट लाइट और वेल्डिंग के काम में भी इस्तेमाल होती है। इस गैस की मदद से सालों साल किसी वस्तु को यथावत संरक्षित रखा जा सकता है।
चांद पर जिस गैस का पता चला है वो औद्योगिक क्षेत्र के लिए वरदान साबित हो सकती है। आर्गन गैस का इस्तेमाल औद्योगिक क्षेत्र के कामकाज में अधिक होता है। किसी भी चीज को संरक्षित रखने में मददगार
यह फ्लोरेसेंट लाइट और वेल्डिंग के काम में भी इस्तेमाल होती है। इस गैस की मदद से सालों साल किसी वस्तु को यथावत संरक्षित रखा जा सकता है।
मौसम और तापमान नियंत्रण में होगा फायदा
इस गैस की मदद से ठंडे से ठंडे वातावरण को रूम तापमान पर रखा जा सकता है। इसीलिए गहरे समुद्र में जाने वाले गोताखारों की पोशाक में इस गैस का उपयोग किया जाता है।
इस गैस की मदद से ठंडे से ठंडे वातावरण को रूम तापमान पर रखा जा सकता है। इसीलिए गहरे समुद्र में जाने वाले गोताखारों की पोशाक में इस गैस का उपयोग किया जाता है।