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जजों की नियुक्तियों को लेकर केंद्र उदासीन : सीजेआई ठाकुर

न्यायमूर्ति ठाकुर ने कैट के अखिल भारतीय
सम्मलेन में अपने संबोधन के दौरान न्यायाधीशों की कमी का उल्लेख तो किया
ही, न्यायाधाकिरणों की खस्ताहाल स्थिति का भी जिक्र किया

Nov 26, 2016 / 05:13 pm

जमील खान

CJI TS Thakur

CJI TS Thakur

नई दिल्ली। उच्च न्यायालयों में न्यायाधीशों की नियुक्ति को लेकर न्यायपालिका और कार्यपालिका के बीच शनिवार को उस वक्त एक बार फिर तकरार सामने आई जब सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश टी. एस. ठाकुर ने न्यायाधीशों की नियुक्तियों को लेकर केंद्र सरकार के उदासीन रवैये की आलोचना की। न्यायमूर्ति ठाकुर ने केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण (कैट) के अखिल भारतीय सम्मलेन में अपने संबोधन के दौरान न्यायाधीशों की कमी का उल्लेख तो किया ही, न्यायाधाकिरणों की खस्ताहाल स्थिति का भी जिक्र किया।

मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि अदालतें खाली हैं और उनमें न्यायाधीश जा नहीं रहे हैं। इस सम्मेलन में केंद्रीय कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद और प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) में राज्य मंत्री डॉक्टर जितेंद्र सिंह भी मौजूद थे। न्यायमूर्ति ठाकुर ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट से सेवानिवृत्त होने के बाद न्यायाधीश किसी भी न्यायाधिकरण का प्रमुख बनने के लिए तैयार नहीं हैं, क्योंकि सरकार उन्हें न्यूनतम सुविधा के तौर पर एक आवास तक मुहैया नहीं करवा पा रही है।

उन्होंने कहा, अदालत कक्ष हैं, लेकिन उनमें न्यायाधीश नहीं। मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि नए न्यायाधिकरण बनने से न्यायपालिका को कोई आपत्ति नहीं है, क्योंकि वे अदालतों का बोझ कम करते हैं, लेकिन इनमें मूलभूत सुविधाएं तो होनी ही चाहिए। हालांकि इस अवसर पर कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने मुख्य न्यायाधीश की टिप्पणी से अपनी असहमति जताई। कानून मंत्री ने कहा कि वह मुख्य न्यायाधीश की बात से सहमत नहीं हैं।

उन्होंने कहा कि सरकार नियुक्ति करने और सुविधा मुहैया करवाने का भरपूर प्रयास कर रही है। सुप्रीम कोर्ट के सेवानिवृत्त सभी न्यायाधीशों को एक ही आकार का आवास देना संभव नहीं है। प्रसाद ने कहा कि इस साल कुल 120 न्यायाधीशों की नियुक्ति हुई है जो अब तक का दूसरा सर्वोच्च नियुक्ति का रिकॉर्ड है। जिला अदालतों में 5000 पद खाली हैं, लेकिन इन्हें भरने में केंद्र सरकार की कोई भूमिका नहीं होती है। गौरतलब है कि उच्च न्यायालयों और न्यायाधिकरणों में न्यायाधीशों को बेहतर सुविधा देने के मामले में पहले भी देश की सबसे बड़ी अदालत अपनी चिंता जाहिर कर चुकी है।

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