मुख्य सचिव की दलील आधिकारियों के ज्वाइंट फोरम ने यह तय किया था कि मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के किसी भी बैठक का बहिष्कार करेंगे। दूसरी तरफ मुख्य सचिव की दलील है कि मंगलवार को कैबिनेट की बैठक है मंत्रियों के बुलाए जाने वाले सामान्य बैठक से अलग है। इस कैबिनेट में आगामी बजट पर चर्चा होनी है। यदि बजट सही समय से पेश और पास नहीं हुआ तो एक अप्रैल 2018 को दिल्ली सरकार के किसी भी अधिकारी या कर्मचारी को वेतन नहीं मिल पाएगा। बेशक हम मंत्रियों के द्वारा बुलाए जाने वाले सामान्य बैठक में नहीं जाए लेकिन कैबिनेट की बैठक में जाना जरुरी है।
संवैधानिक नियमों का दिया हवाला दिल्ली सरकार के अधिकारियों ने मुख्य सचिव और विधायकों के बीच विवाद के बाद से टीबीआर के मुताबिक
काम करने का फैसला किया था। मुख्य सचिव की राय है कि टी.बी.आर. (ट्रांजैक्शन आफ बिजनेस रुल) के मुताबक दिल्ली का मुख्य सचिव दिल्ली सरकार के काउसिंल आफ मिनिस्टर (मंत्रिमंडल) का सचिव होता है। मंत्रिमंडल के निर्णय पर मंत्रिमंडल के सचिव (यानी मुख्य सचिव) की मुहर आवश्यक है। मंत्रिमंडल का निर्णय मुख्य सचिव के पूर्ण सहमती के बिना लागू ही नहीं हो सकता है।
संवैधानिक रूप से बजट कार्यपालिका का अंग नहीं है ये विधायिका से संबंधित है। मुख्य सचिव के मुताबिक हमारी लड़ाई कार्यपालिका से है ना कि विधायिका से। बजट भारत सरकार से पास होने के बाद दिल्ली विधानसभा में रखा जाता है। यह एक संवैधानिक व्यवस्था है और अगर हम कह रहे हैं कि दिल्ली की जनता के साथ हैं तो इसमें सहयोग देना होगा। यदि बजट सही समय से पास नहीं हुआ तो एक मार्च से सैलरी नहीं मिल पाएगी। ऐसी परिस्थिती में कैबिनेट और विधानसभा की कमेटीयों की बैठकों में जाना जरुरी है।
सिर्फ कैबिनेट में ही जाएंगे मुख्य सचिव के निर्णय पर कुछ अधिकारियों की दलील है कि ये निर्णय केवल कैबिनेट के में जाने को लेकर है। दूसरे किसी भी बैठक में अधिकारी नहीं जाएंगे।
नाराज हैं कर्मचारी अंशु प्रकाश के इस निर्णय से दिल्ली सरकार के सभी कर्मचारी नाराज हैं। उनकी यह दलील है कि ज्वाइट फोरम की बैठक में जब फैसला ले लिया गया था तो उस पर बने रहना चाहिए था