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वहीं, उप-मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने इस मुद्दे में चुनाव आयोग के हत्क्षेप को गलत ठहराया है। इसे लेकर उन्होंने चुनाव आयोग को एक खत लिखा है। इस खत में सिसोदिया कहा कि ये मामला चुनाव आयोग के अधिकार क्षेत्र में नहीं आता है, खासकर जब राज्य में चुनाव ना हो रहे हों। इस संबंध में उन्होंने मीडिया से बात करने से भी इनकार कर दिया। तो वहीं, मुख्य चुनाव आयुक्त ओपी रावत ने भी इस पर कोई भी टिप्पणी करन से मना कर दिया। ऐसी संभावना जताई जा रही है कि चुनाव आयोग आदेश की अवहेलना को लेकर जल्द ही बैठक बुलाएगा और इस मुद्दे पर चर्चा करेगा।
क्या है मामला
दरअसल, बीते सितंबर को केजरीवाल सरकार ने दिल्ली के सभी पब्लिक और प्राइवेट स्कूलों में पढ़ने वाले छात्रों के परिजनों और रिश्तेदारों का डाटा कलेक्ट करने को कहा था। इसके तहत मोबाइल नंबर, वोटर आईडी और एजुकेशनल क्वालिफेशन की जानकारी ली जा रही थी। इस पर डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया ने कहा कि इस डाटा के कलेक्ट करने के पीछे की वजह ये जानना है कि दिल्ली के स्कूलों में पढ़ने वाले छात्रों में से कितने दिल्ली में रहते हैं। दिल्ली सरकार का कहना है कि छात्रों का डाटा बैंक एकत्र कर उनके रेजीडेंशियल एड्रेस की पुष्टि की जाएगी। यही नहीं इसकी मदद से विभिन्न लॉन्ग टर्म और शॉर्ट टर्म परियोजनाएं बनाने में भी मदद मिलेगी।
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विपक्ष का विरोध
बता दें कि दिल्ली सरकार द्वारा उठाए गए इस कदम की विपक्षी पार्टियों और सामाजित संगठनों ने आलोचना की है। उन्होंने इस काम को निजता का उल्लंघन करार दिया है। फिलहाल ये मामला दिल्ली हाईकोर्ट में है। शिकायत मिलने के बाद चुनाव आयोग ने इस पर आपत्ति जताई है। आयोग के अधिकारियों का कहना है कि वोटरों के वोटर आईडी से संबंधित जानकारी इकट्ठा करने का अधिकार सिर्फ चुनाव आयोग को है, कोई तीसरा पक्ष ऐसा नहीं कर सकता है।