हाईकोर्ट ने कहा- अब केंद्र सरकार के पाले में फैसला
दिल्ली हाई कोर्ट एडवोकेट शाहिद आजाद द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई कर रही थी। हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस राजेंद्र मेनन और जस्टिस वी.कामेश्वर राव ने कहा कि तीन तलाक को जब सुप्रीम कोर्ट द्वारा असंवैधानिक घोषित किया गया, उसके बाद केंद्र सरकार इसपर अध्यादेश लेकर आई। इस तरह अब इस मुद्दे पर फैसला करना सरकार के पाले में है। याचिका में कहा गया कि अध्यादेश मनमाना और अनावश्यक है और एक कठोर, अमानवीय, अनुचित और अस्पष्ट कानून को अस्तित्व में लाता है जो अध्यादेश के जरिए संसद के सम्मान और जिन लोगों का विश्वास भारत के धर्मनिरपेक्ष संविधान में निहित है उनके सम्मान में कमी को दर्शाता है।
मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने भी अध्यादेश पर उठाया सवाल
इससे पहले अखिल भारतीय मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (एआईएमपीएलबी)ने पिछले सप्ताह तीन तलाक को अपराध बनाने के लिए केंद्र सरकार द्वारा लाए गए अध्यादेश को ‘लोकतंत्र की हत्या और संसद का अपमान’ करार दिया। एआईएमपीएलबी के सचिव मौलाना खालिद सैफुल्लाह रहमानी ने कहा कि सरकार एक ऐसे मुद्दे पर पीछे के दरवाजे से अध्यादेश लाई जो ज्यादा महत्वपूर्ण नहीं था और जिस मामले में लोकतांत्रिक तरीके से और जनता की राय के माध्यम से कानून बनाया जा सकता था। रहमानी ने कहा कि यह कानून मुस्लिमों के लिए अस्वीकार्य है। उन्होंने कहा कि मुस्लिम महिलाएं पहले ही इसे खारिज कर चुकी हैं। एआईएमपीएलबी सदस्य और हैदराबाद से सांसद असदुद्दीन ओवैसी ने भी संबोधित किया। उन्होंने कहा कि संसद का अगला सत्र जैसे ही शुरू होगा, यह अध्यादेश रद्द हो जाएगा।
19 सितंबर को तीन तलाक पर आया अध्यादेश
बता दें कि पांच राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले, केंद्रीय मंत्रिमंडल ने 19 सितंबर को तीन तलाक को एक आपराधिक कृत्य के दायरे में लाने वाले अध्यादेश को मंजूरी दे दी। सरकार ने कहा कि ऐसा करना ‘अनिवार्य आवश्यकता’ और ‘अत्यधिक जरूरी’ था। केंद्रीय मंत्रिमंडल की बैठक के बाद इस मामले में अध्यादेश लाने की जरूरत पर कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कहा कि सर्वोच्च न्यायालय द्वारा तीन तलाक को असंवैधानिक घोषित करने और लोकसभा द्वारा विधेयक पारित करने के बाद भी त्वरित तीन तलाक अभी भी ‘लगातार जारी’ है। राज्यसभा में यह विधेयक लंबित है। उन्होंने कहा कि तीन तलाक के मुद्दे का धर्म, पूजा के तरीके से कुछ लेना-देना नहीं है। यह पूरी तरह से लैंगिक न्याय व लैंगिक समानता से जुड़ा हुआ है।