किसान आंदोलन से अर्थव्यवस्था प्रभावित, हर रोज हो रहा 3500 करोड़ रुपये का घाटा
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देश के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में कृषि क्षेत्र की हिस्सेदारी 14 फीसदी से ज्यादा है।
देश के कई राज्यों की अर्थव्यवस्था मुख्य रूप से एग्रीकल्चर और हॉर्टीकल्चर पर निर्भर है।
नई दिल्ली। किसानों का आंदोलन लगातार 20 दिनों से जारी है। सरकार और किसान के बीच लगातार बातचीत का दौर जारी है। मगर अभी तक कोई हल निकलता नहीं दिखाई दे रहा है। बढ़ती ठंड के बावजूद किसानों के हौसले पस्त नहीं हुए है। वे अपनी मांगों के पूरा हुए बिना दिल्ली की सीमाएं छोड़ने को तैयार नहीं हैं। मगर एक सवाल ये उठता है कि इस तरह क्या अंदोलन से देश की अर्थव्यवस्था पर असर पड़ रहा है, तो जवाब है हां। देश के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में कृषि क्षेत्र की हिस्सेदारी 14 फीसदी से ज्यादा है और कोरोना वायरस महामारी की वजह से उत्पन्न हुई आर्थिक मंदी के बीच 2020-21 में किसानों की हिस्सेदारी और भी अधिक होने की उम्मीद है।
ऐसे में भारतीय वाणिज्य एवं उद्योग मंडल भारतीय वाणिज्य एंव उद्योग मंडल एसोचैम के अनुसार ‘किसानों के मुद्दों का शीघ्र ही कोई हल निकलना जरूरी है। किसानों के विरोध के कारण रोजाना 3500 करोड़ रुपये का घाटा हो रहा है।’ इससे पंजाब, हरियाणा और हिमाचल प्रदेश जैसे राज्यों की अर्थव्यवस्थाएं प्रभावित हो रही हैं।
देश के कई राज्यों की अर्थव्यवस्था मुख्य रूप से एग्रीकल्चर और हॉर्टीकल्चर पर निर्भर है। इसके अलावा फूड प्रोसेसिंग, कॉटन टेक्सटाइल्स, ऑटोमोबाइल, फार्म मशीनरी और आईटी जैसी इंडस्ट्री भी इन राज्यों की लाइफलाइन है।
पंजाब, हिमाचल प्रदेश, हरियाणा और जम्मू एंड कश्मीर की कुल अर्थव्यवस्था 18 लाख करोड़ रुपये की आकी गई है। किसान आंदोलन के कारण सड़कें, टोल प्लाजा और रेलवे जैसी आर्थिक गतिविधियां प्रभावित हुई हैं।
एसोचैम के सेक्रेटरी जनरल दीपक सूद के अनुसार टेक्सटाइल्स,ऑटो कंपोनेंट, बाइसाइकल्स और स्पोर्ट उत्पादों जैसी इंडस्ट्री अपने निर्यात का ऑर्डर पूरा नहीं कर पा रहे हैं। सप्लाई चेन प्रभावित होने से फल और सब्जियों के खुदरा दाम बढ़े हैं।
कोरोना से उबरने के बाद अर्थव्यवस्था दोबारा दबाव में इस मामले में भारतीय उद्योग परिसंघ (CII ) का कहना है कि किसानों के आंदोलन की वजह के कारण सामानों की आपूर्ति प्रभावित हो सकती है। इससे आने वाले दिनों में अर्थव्यवस्था पर गहरा असर पड़ सकता है।
सीआईआई के अनुसार किसानों के आंदोलन की वजह से अर्थव्यवस्था के पुनरोद्धार का सिलसिला रुक सकता है। सीआईआई ने कहा, ‘अर्थव्यवस्था को वृद्धि की राह पर लाने की चुनौती के बीच हम सभी अंशधारकों से आग्रह करते हैं कि वे मौजूदा विरोध-प्रदर्शन के बीच कोई रास्ता ढूंढें और आपसी सहमति के समाधान पर पहुंचें।’
सीआईआई के अनुसार कोरोना वायरस महामारी की वजह से लागू लॉकडाउन से पहले ही इस आपूर्ति में बाधा आ चुकी है। अब आपूर्ति श्रृंखला सुधार की राह पर है। मगर किसान आंदोलन की वजह से फिर दबाव में आ गई है। उद्योग मंडल के अनुसार सामान की करीब दो-तिहाई खेप को पंजाब, हरियाणा, राजस्थान और दिल्ली-एनसीआर में अपने गंतव्यों पर पहुंचने में 50 फीसदी अतिरिक्त समय लग रहा है।
इसके साथ हरियाणा, उत्तराखंड और पंजाब के भंडारगृहों से परिवहन वाहनों को दिल्ली पहुंचाने में दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। इसे पहुंचाने में 50 फीसदी अधिक यात्रा करनी पड़ रही है। जल्द हल निकालने की जरूरत
विशेषज्ञों का कहना है कि मौजूदा किसान आंदोलन का तत्काल हल निकलना जरूरी है। इससे न केवल आर्थिक वृद्धि प्रभावित होगी बल्कि आपूर्ति श्रृंखला पर भी असर पड़ रहा है। इससे बड़े और छोटे उद्योग समान रूप से प्रभावित हो रहे हैं।
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