इस बारे में समय-समय पर अंतरराष्ट्रीय और राष्ट्रीय मीडिया में खबरें आती रही हैं। तो कहानी शुरू होती है 60 के दशक से। वर्ष 1965 के अक्टूबर महीने में अमरीकी खुफिया एजेंसी सीआईए के साथ मिलकर भारतीय खुफिया एजेंसी आईबी ने चीन की जासूसी करने की योजना बनाई। तैयारी यह थी कि वे नंदादेवी की ऊंचाई पर जासूसी उपकरण लगाएंगे, जिससे नीचे चीन की गतिविधियों पर नजर रखी जा सकेगी।
कहा जाता है कि दोनों देशों के जासूस मिलकर अपने साथ परमाणु पावर्ड मॉनिटरिंग डिवाइस ले जाने में कामयाब रहे। इससे करीब एक साल पहले यानी वर्ष 1964 में चीन में पहला परमाणु परीक्षण हुआ था। इससे अमरीका और रूस दोनों बड़े देश परेशान थे। इसके अलावा, भारत से भी चीन के रिश्ते कुछ ज्यादा अच्छे नहीं थे। ऐसे में चीन पर नजर रखने के प्रयास जैसी बात आसानी से मानी जा सकती है।
बताया जाता है कि जासूसी से पहले इसका ट्रायल अलास्का में भी किया जा चुका था। वहां की माउंट मैककिनले पहाड़ी पर इस काम में भारत की मदद अमरीका ने की थी। इसके बाद दोनों देशों की टीम अपने साथ प्लूटोनियम कैप्सूल और दूसरे जासूसी उपकरण लेकर पहुंची। योजना के तहत ये उपकरण नंदा देवी के लगभग आठ हजार मीटर की ऊंचाई पर रखा जाना था। हालांकि, तभी बर्फीला तूफान आया और अधिकारियों को जान बचाने के लिए उतराई की तरफ लौटना पड़ा। इस बीच हालात बिगड़े तो उपकरण को वहीं छोडक़र निकलना पड़ा।