क्या है मामला केरल के रहने वाले जोसेफ शीन ने सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दायर कर मांग की थी कि धारा 497 की वैधता पर फिर से विचार करना चाहिए क्योंकि यह जेंडर के आधार पर भेदभाव करती है। इस याचिका में एडल्टरी और वैवाहिक मामलों में महिलाओं और पुरुषों को समान सजा देने की मांग की गई है। इससे पहले सुनवाई में चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा ने इस संबंध में केंद्र सरकार को नोटिस जारी कर जवाब मांगा था। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से यह भी जानना चाहा था कि सरकार की नजर में आईपीसी की धारा 497 की वैधता क्या है? बेंच ने यह भी पूछा था कि यह कानून बनाए रखने का औचित्य क्या है जब कि यह साबित हो चुका है कि यह पुरुषों और महिलाओं के बीच विभेद करता है।
केंद्र के तर्क केंद्र सरकार ने इस मामले में बुधवार को अपना हलफनामा दायर किया। हलफनामे के मुताबिक ‘धारा 497 भारतीय दंड विधान का एक जरूरी प्रावधान है और उसे हटाया नहीं जा सकता है। आईपीसी की धारा 497 और सीपीसी की धारा 198(2) को खत्म करने से एडल्टरी अपराध नहीं रह जाएगी। इससे सामजिक संतुलन और शुचिता को बड़ा नुकसान होगा। इस याचिका को रद्द करने की अपील करते हुए केंद्र सरकार ने कहा कि ऐसे कानूनों को खत्म करते से नैतिकता और रिश्तों की पवित्रता का डर खत्म हो जाएगा जिसका असर भारत की संस्कृति पर पड़ेगा जोकि विवाह संस्था और उसकी पवित्रता पर जोर देती है।
क्या है धारा 497 बता दें कि धारा 497 एडल्टरी और विवाह से बाहर संबंधों से जुड़ा है। इसके तहत यदि एक पुरुष किसी और महिला से संबंध बनाता है तो वह अपराधी माना जाएगा और उसे 5 साल तक की सजा हो सकती है जबकि उक्त महिला के ऊपर कोई मामला नहीं बनेगा। याचिका में इसी बिंदु का विरोध किया गया था। याचिकाकर्ता ने कोर्ट से पूछा था कि एक रिश्ते में पुरुष ही बहकाने वाला और चारित्रिक रूप से दुर्बल हो सकता है? क्या महिला इस तरह के संबंधों को बढ़ावा नही दे सकती है।