‘हर्ड इम्यूनिटी’ की दर धीमी वहीं, अगर चीन के वुहान शहर की बात करें तो यहां यह आंकड़ा हर 10 लोगों में से एक व्यक्ति का है। हालांकि, इस दौरान इम्यून (प्रतिरक्षा) आबादी का अनुपात बहुत कम है। आसान भाषा में समझें तो कोरोना वायरस से संक्रमित होने वाले लोगों की संख्या के मुकाबले ऐसे लोगों की संख्या बहुत कम है, जिनके अंदर इस बीमारी से लड़ने का एंटी बॉडी पैदा हो चुकी है। यही कारण है कि ‘हर्ड इम्यूनिटी’ के बढ़ने की दर अभी बहुत धीमी है।
टीके के बिना ‘हर्ड इम्यूनिटी’ को पाना मुश्किल कई देशों के आंकड़ों के अनुसार, यह साफ है कि केवल पांच से 10 फीसदी लोगों का एक छोटा सा हिस्सा इस वायरस के संपर्क में है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के प्रमुख वैज्ञानिक डॉ सौम्या स्वामीनाथन ने कहा कि टीके के बिना ‘हर्ड इम्यूनिटी’ को पाना मुश्किल होगा। ऐसे में कोरोना वायरस से बीमार या मरने वाले लोगों की संख्या अधिक हो सकती है।
क्या होता है ‘हर्ड इम्यूनिटी’ दुनिया में कोरोना से लड़ने के दो बेहद अलग-अलग हथियार हैं। एक कहता है घर में रहो। दूसरा कहता है घर से निकल जाओ। बात भी वाजिब है। घर में इंसान आखिर कब तक रह सकता है, क्योंकि इससे तो पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था ही बैठ जाएगी। लोगों की नौकरियां जाने लगेंगी। खाने-पीने के लाले पड़ जाएंगे. लोग डिप्रेशन में आ सकते हैं। तो फिर करें क्या। कोरोना से लड़ने का दूसरा रास्ता कहता है कि घर से निकल जाओ।
इस थ्योरी के मुताबिक लॉकडाउन तभी तक कारगर है जब तक लोग घरों में कैद हैं। जैसे ही लोग घरों से निकलेंगे ये संक्रमण उन्हें जकड़ लेगा। इसलिए छुपे नहीं बल्कि इसका सामना करें। जितने ज़्यादा लोग इससे संक्रमित होंगे। इंसानी जिस्म में इससे लड़ने की उतनी ज़्यादा ताकत पैदा होगी। इसे ही हर्ड इम्युनिटी कहते हैं।
दुनिया को कोरोना वायरस से बचने के लिए कई वैज्ञानिक हर्ड इम्युनिटी अपनाने की सलाह दे रहे हैं। ताकि इसे फैलने से रोका जा सके। बड़ी अजीब सी बात है। मगर मेडिकल साइंस की सबसे पुरानी पद्धति के हिसाब से ये सच है। हर्ड इम्युनिटी यानी सामूहिक प्रतिरोधक क्षमता। इसका मतलब ये है कि भविष्य में लोगों को बचाने के लिए फिलहाल आबादी के एक तय हिस्से को वायरस से संक्रमित होने दिया जाए। इससे उनके जिस्म के अंदर संक्रमण के खिलाफ सामूहिक इम्युनिटी यानी प्रतिरोधक क्षमता पैदा होगी।