रक्षा मंत्री के इस निर्णय से सेनाओं के उप प्रमुखों को ‘प्रोपराइटरी आर्टिकल सर्टिफिकेट’ (पीएसी) और सिंगल टेंडर इंक्वायरी’ (एसटीई) में अधिक वित्तीय अधिकार मिल गए हैं। पहले पीएसी में ये अधिकार प्रतिस्पर्धात्मक बोली के 50 प्रतिशत के बराबर थे लेकिन अब इन्हें प्रतिस्पर्धात्मक बोली के बराबर वित्तीय अधिकार दिए गए हैं। एसटीई के मामले में इनके अधिकार प्रतिस्पर्धात्मक बोली की पांच प्रतिशत से बढाकर 50 प्रतिशत कर दिए गए हैं। हांलाकि इन दोनों मामलों में क्रमश: 50 करोड़ रूपये तथा 5 करोड़ रूपए की सीमा बरकरार रहेगी।
रक्षा मंत्रालय ने रक्षा खरी को सरल तथा तेज बनाने के लिए हाल ही में कई कदम उठाए हैं। इनसे सेनाओं की युद्ध तैयारियां पुख्ता बनेंगी। साथ ही उन्हें सैन्य साजो सामान के रख रखाव और उन्हें इस्तेमाल लायक बनाए रखने से संबंधित खरीद में भी मदद मिलेगी।
इससे पहले मंगलवार को संसद की स्थायी समिति ने लोकसभा में एक हैरान करने वाले रिपोर्ट पेश किया। रिपोर्ट के मुताबिक हथियारों का सबसे बड़ा आयातक होने के बावजूद भारतीय सेना के पास दो-तिहाई से अधिक यानी 68 प्रतिशत हथियार और उपकरण पुराने हैं और केवल 8 प्रतिशत ही अत्याधुनिक हैं। हालत यह है कि सेना के पास जरूरत पड़ने पर हथियारों की आपात खरीद और दस दिन के भीषण युद्ध के लिए जरूरी हथियार तथा साजो-सामान तथा आधुनिकीकरण की 125 योजनाओं के लिए भी पर्याप्त पैसा नहीं है। दो मोर्चों पर एक साथ युद्ध की तैयारी के नजरिये से भी सेना के पास हथियारों की कमी है और उसके ज्यादातर हथियार पुराने हैं।
रक्षा मंत्रालय से संबद्ध संसद की स्थायी समिति का का मानना है कि रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता के लिए से शुरू की गयी मेक इन इंडिया योजना के तहत सेना की 25 परियोजनाएं भी पैसे की कमी के कारण ठंडे बस्ते में जा सकती हैं। स्थायी समिति ने वर्ष 2018-19 के लिए रक्षा मंत्रालय की अनुदान मांगों से संबंधित रिपोर्ट लोकसभा में पेश की।