स्वास्थ्य देखभाल भारत में कोई चुनावी मुद्दा नहीं
हार्ट केयर फाउंडेशन ऑफ इंडिया (एचसीएफआई) के अध्यक्ष डॉ. के.के. अग्रवाल ने कहा, “स्वास्थ्य देखभाल भारत में कोई चुनावी मुद्दा नहीं है, सार्वजनिक स्वास्थ्य में सरकारी निवेश बहुत खराब रहा है। सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का लगभग 4.7 प्रतिशत ही गुणवत्ता और समय पर स्वास्थ्य देखभाल पर खर्च हो रहा है। हालांकि कई भारतीय, विशेष रूप से गरीबी रेखा से नीचे वाले इस बात से अनजान हैं।”
इन कारणों से खराब हो रही है हालत
उन्होंने कहा, ‘ऐसे अस्पताल, जहां बीपीएल परिवार बिना भुगतान किए इलाज करवा सकते हैं, लेकिन तथ्य यह है कि इन विकल्पों के बारे में जागरूक करने के लिए कोई निवारण तंत्र नहीं है। इससे समस्या बढ़ती है और वह अपनी जेब से भुगतान करते हैं। फिर खराब प्रबंधन, भ्रष्टाचार, उत्तरदायित्व और नैतिकता जैसे मुद्दे हैं जो समस्या को बिगाड़ते हैं। तमिलनाडु और केरल जैसे राज्य के आंकड़े उदाहरण के रूप में कार्य कर सकते हैं। इन राज्यों में, स्वास्थ्य सेवाएं चुनावी जनादेश का हिस्सा हैं और इसीलिए यहां सेवाओं की गुणवत्ता बेहतर है।’ बता दें कि भारत के संविधान का भाग-4 राज्य नीति के निर्देशक सिद्धांतों के बारे में बात करता है। भाग-4 के तहत अनुच्छेद 47 में पोषण का स्तर बढ़ाने और जीवन स्तर को बढ़ाने तथा सार्वजनिक स्वास्थ्य में सुधार के लिए राज्य के कर्तव्यों की सूची है।
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डॉ. अग्रवाल ने आगे कहा, ‘वक्त का तकाजा है कि स्वास्थ्य देखभाल पर तत्काल एकीकृत पहल की जाए, ताकि इसे एक ही समय में सार्वभौमिक रूप से सुलभ और सस्ता बनाया जा सके। इससे न केवल स्वास्थ्य की जरूरतों को पूरा करने में मदद मिलेगी, बल्कि गरीबी और विकास के स्तर पर भी सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। एक ऐसी रणनीति जो नागरिकों को अधिक प्रतिस्पर्धी बनाती है और देश के विकास के लिए कार्य करती है, इस समय जरूरी है।’ बेहतर और गुणवत्ता वाली स्वास्थ्य सेवाओं की पहुंच बनाने की मांग जारी है, ऐसे में हममें से प्रत्येक को अपनी देखभाल खुद करने की जिम्मेदारी बनती है।