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रफाल विवाद के बीच भारतीय वायु सेना का बड़ा बयान, तय समय पर ही भारत आएंगे विमान

रफाल विवाद के बीच भारतीय वायु सेना का बड़ा बयान, तय समय पर ही भारत आएंगे विमान

नई दिल्लीFeb 12, 2019 / 05:23 pm

धीरज शर्मा

IAF to induct Rafale fighter jets in Ambala today formally in Golden Arrow Squadron

नई दिल्ली। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने एक बार फिर मंगलवार को रफाल मुद्दे को लेकर मोदी सरकार को घेरा। इस बीच भारतीय वायु सेना की ओर से बड़ी खबर सामने आई है। भारतीय सेना ने कहा है कि रफाल कार्यक्रम अपने तय समय (सितंबर) पर ही होगा। फ्रांस के रास्ते विमान की पहली डिलीवरी भारत करवाएगी जाएगी। सेना का ये बयान उस समय आया जब कांग्रेस संसद से लेकर सड़क तक हर तरफ मोदी सरकार को रफाल मुद्दे पर घेर रही है।
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कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी ने राफेल के मुद्दे को लेकर एक बार फिर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर सवाल उठाए हैं। मंगलवार को एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कांग्रेस नेता ने एक ईमेल के हवाले से कई गंभीर आरोप लगाए। उन्होंने आरोप लगाया कि रफाल डील पर हस्ताक्षर करने से 10 दिन पहले ही अनिल अंबानी ने फ्रांस के रक्षा मंत्री से मुलाकात कर कहा था कि जब पीएम आएंगे तो एक एमओयू (रफाल डील) साइन होगा, जिसमें मेरा नाम होगा।
ये है पूरा रफाल मामला
वायु सेना को अपनी क्षमता बढ़ाने के लिए कम से कम 42 लडा़कू स्क्वाड्रंस की जरूरत थी, लेकिन उसकी वास्तविक क्षमता घटकर महज 34 स्क्वाड्रंस रह गई। इसलिए वायुसेना की मांग आने के बाद 126 लड़ाकू विमान खरीदने का सबसे पहले प्रस्ताव अटल बिहारी वाजपेयी की एनडीए सरकार ने रखा था, लेकिन इस प्रस्ताव को आगे बढ़ाया कांग्रेस सरकार ने. रक्षा खरीद परिषद, जिसके मुखिया तत्कालीन रक्षा मंत्री एके एंटोनी थे, ने 126 एयरक्राफ्ट की खरीद को अगस्‍त 2007 में मंजूरी दी थी। यहां से ही बोली लगने की प्रक्रिया शुरू हुई। इसके बाद आखिरकार 126 विमानों की खरीद का आरएफपी जारी किया गया। रफाल की सबसे बड़ी खासियत ये है कि ये 3 हजार 800 किलोमीटर तक उड़ान भर सकता है।
छह फाइटर में से चुना गया रफाल
यह डील उस मीडियम मल्‍टी-रोल कॉम्‍बेट एयरक्राफ्ट (एमएमआरसीए) कार्यक्रम का हिस्सा है, जिसे रक्षा मंत्रालय की ओर से इंडियन एयरफोर्स (आईएएफ) लाइट कॉम्‍बेट एयरक्राफ्ट और सुखोई के बीच मौजूद अंतर को खत्‍म करने के मकसद से शुरू किया गया था। अमरीका, रूस और स्वीडन समेत 6 फाइटर जेट्स के बीच फ्रांस के दस्सू रफाल को इसलिए चुना गया क्योंकि रफाल की कीमत बाकी जेट्स की तुलना में काफी कम थी। इसके अलावा इसका रख-रखाव भी काफी सस्‍ता था।
लंबे समय तक अटकी रही डील
भारतीय वायुसेना ने कई विमानों के तकनीकी परीक्षण और मूल्यांकन किए और साल 2011 में यह घोषणा की कि रफाल और यूरोफाइटर टाइफून उसके मानदंड पर खरे उतरे हैं।
साल 2012 में रफाल को एल-1 बिडर घोषित किया गया और इसके मैन्युफैक्चरर दस्सू एविएशन के साथ कॉन्ट्रैक्ट पर बातचीत शुरू हुई। लेकिन आरएफपी अनुपालन और लागत संबंधी कई मसलों की वजह से साल 2014 तक यह बातचीत अधूरी ही रही।

मोदी सरकार में बनी समझौते पर बात
रफाल मुद्दे को लेकर वर्ष 2014 में जब नरेंद्र मोदी की ने सरकार बनाई तो इस मुद्दे पर अपनी कोशिश शुरू कर दी। पीएम की फ्रांस यात्रा के दौरान साल 2015 में भारत और फ्रांस के बीच इस विमान की खरीद को लेकर समझौता किया। इस समझौते में भारत ने जल्द से जल्द 36 रफाल विमान फ्लाइ-अवे यानी उड़ान के लिए तैयार विमान हासिल करने की बात कही।
समझौते के मुताबिक विमानों की आपूर्ति भारतीय वायु सेना की जरूरतों के मुताबिक उसकी ओर से तय समय सीमा के भीतर होनी थी और विमान के साथ जुड़े तमाम सिस्टम और हथियारों की आपूर्ति भी वायुसेना की ओर से तय मानकों के अनुरूप होनी है। इसमें कहा गया कि लंबे समय तक विमानों के रखरखाव की जिम्मेदारी फ्रांस की होगी।
2016 में हुआ आईजीए
सुरक्षा मामलों की कैबिनेट से मंजूरी मिलने के बाद दोनों देशों के बीच 2016 में आईजीए हुआ। समझौते पर दस्तखत होने के करीब 18 महीने के भीतर विमानों की आपूर्ति शुरू करने की बात है यानी 18 महीने के बाद भारत में फ्रांस की तरफ से पहला राफेल लड़ाकू विमान दिया जाएगा।

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