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एनएसजी सदस्यता पर रूस ने दिया भारत का साथ- कहा पाकिस्तान से कोई तुलना नहीं

सदस्यता मिलने से न्यूक्लियर टेक्नोलॉजी और यूरेनियम बिना किसी समझौते के मिल सकेंगे। अर्थव्यवस्था में हो सकता है बड़ा बदलाव।

नई दिल्लीDec 07, 2017 / 02:49 pm

Navyavesh Navrahi

meeting

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दुनिया के महत्वपूर्ण ग्रुप एनएसजी (न्यूक्लियर सप्लायर्स ग्रुप) की सदस्यता लेने में भारत के रास्ते में चीन रोड़े अटका रहा है। लेकिन चीन को उस समय बड़ा झटका लगा, जब रूस इस मामले में भारत के साथ आ गया। कल ये मामला उस समय फिर चर्चा में आया, जब रूस के उप विदेश मंत्री सर्गेई रयाबकोव और ने विदेश सचिव एस. जयशंकर के बीच मुलाकात हुई। बैठक के बाद रयाबकोव ने कहा कि पाकिस्तान और भारत की सदस्यता की दावेदारी को एक साथ नहीं जोड़ा जा सकता। दोनों के आवेदनों में कोई समानता नहीं है। इसलिए दोनों पर एक साथ फैसला लिया जा सकता है। बता दें, 48 सदस्यों वाले एनएसजी में भारत की सदस्यता पर चीन ने आपत्ति जताई थी। वे भारत की एनएसजी में सदस्यता का विरोध कर रहा है। हालांकि पाकिस्तान की दावेदारी पर कई अन्य देश भी सहमति नहीं बना पाए।
भारत की सदस्यता की आपत्ति को लेकर विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने इस साल की शुरुआत में रूस से चीन को मनाने की बात की थी। इसलिए रूस का ये बयान इस समय और भी महत्वपूर्ण हो जाता है। हालांकि रूस को इस बात का भरोसा नहीं है कि चीन उसकी बात मानेगा। इसलिए रबावकोव ने दूसरे सदस्य देशों को भी भारत को सदस्यता दिलाने में मदद करने को कहा है। जबकि ये भी कहा कि मास्को विभिन्न स्तर पर चीन के साथ चर्चा करेगा। गौर हो, किसी समय भारत और रूस में गहरी मित्रता रही है। जानकारों का मानना है कि शायद उसी की वजह रूस भारत को अच्छी तरह समझता है और साथ देने के लिए आगे आया है।
इसलिए महत्वपूर्ण है सदस्यता
भारत के लिए एनएसजी की सदस्यता बेहद महत्वपूर्ण है। भारत इसका सदस्य बन जाता है तो न्यूक्लियर टेक्नोलॉजी और यूरेनियम बिना किसी समझौते के मिल सकेंगे। उनके प्लांट से निकलने वाले कचरे को खत्म करने के लिए साथी सदस्य मदद भी करेंगे। इससे साउथ एशिया में भारत चीन के बराबर हो जाएगा। चूंकि न्यूक्लियर टेक्नोलॉजी से हथियार भी बनाए जा सकते हैं। इसे नियंत्रित करने के लिए ही एनएसजी बनाया गया था। मई 1974 में भारत के न्यूक्लियर टेस्ट करने के बाद ये ग्रुप अस्तित्व में आया। इसका काम प्रमाणु से संबंधित सामान के एक्सपोर्ट को देखना है। ग्रुप ने इसके लिए गाइडलाइंस बनाई हैं। इनके अनुसार प्रमाणु संबंधित सामग्री किसी सदस्य देश को तभी दी जा सकती है, जब ये यकीन हो कि उसका इस्तेमाल हथियार बनाने में नहीं किया जाएगा।

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