क्या है मामला?
मामले के अनुसार, धनराज सुरना के पास एक ट्रक था जिसका बीमा ओरियंटल इंश्योरेंस कंपनी से करवाया था। इस गाड़ी पर ब्रज मोहन सिंह नाम के व्यक्ति को ड्राइवर रखा गया। 21 मई 2006 को गाड़ी में सामान लादकर ड्राइवर गुवाहाटी के लिए निकला। मणिपुर में सामान उतारने के बाद से ड्राइवर गाड़ी समेत लापता हो गया।
थाने में उसके खिलाफ एफआई आर में विश्वासघात का मामला दर्ज किया गया। जब धनराज ने गाड़ी चोरी होने के मामले में पॉलिसी के तहत क्लेम लेने के लिए भी एप्लीकेशन दिया, तो इंश्योरेंस कंपनी ने क्लेम देने से इनकार कर दिया। कंपनी ने कहा कि पीड़ित के साथ जो घटना हुई है वह चोरी के तहत नहीं आती है, विश्वासघात की श्रेणी में आती है और ये पॉलिसी के तहत नहीं आता।
कंज्यूमर कोर्ट ने याची के पक्ष में दिया फैसला
सुरना ने कंज्यूमर कोर्ट में क्लेम लेने के लिए याचिका दाखिल की। इंश्योरेंस कंपनी ने भी इस केस में अपना पक्ष रखा लेकिन कंज्यूमर फोरम ने सुरना के पक्ष में फैसला सुनाते हुए कंपनी को निर्देश दिए कि वह ग्राहक को पूरा क्लेम दे।
कंपनी ने नेशनल कमीशन में किया चैलेंज
फैसले के इंश्योरेंस कंपनी ने असम स्टेट कमीशन में चैलेंज किया लेकिन उनकी अपील को खारिज कर दिया गया। इसके बाद इंश्योरेंस कंपनी ने इस मामले में दोबारा सुनवाई के लिए याचिका दायर की। इसके बाद नेशनल कमीशन ने मामले को गहराई से जाना कि आखिर मसला क्या है। कमीशन ने कहा कि जब आपका कोई विश्वासपात्र व्यक्ति ही आपकी गाड़ी के साथ लापता हो जाता है तो क्या मोटर इंश्योरेंस पॉलिसी के अंतर्गत यह मामला चोरी का बनता है। कमीशन ने इस बात पर गौर किया कि मामूली आरोप लगाने के अलावा इंश्योरेंस कंपनी ऐसा कोई सबूत पेश नहीं कर पाई थी जिससे साबित हो कि ड्राइवर ने अपने मालिक का विश्वास तोड़ते हुए ट्रक को गायब कर दिया है।
चोरी का ही बनता है मामला
इसके बाद नेशनल कमीशन ने यूनाइटेड इंडिया इंश्योरेंस और रविकांत गोपालका के मामले में 3 सदस्यीय बेंच के जजमेंट को आधार बनाया। इस मामले में बेंच ने कहा था कि भले ही ड्राइवर ने गाड़ी चुराई हो, मामला चोरी का ही बनता है। साथ ही बेंच ने कहा था कि पॉलिसी के तहत न सिर्फ गाड़ी चोरी होने पर बल्कि किसी अन्य घटना में नुकसान भी गाड़ी की पॉलिसी में क्लेम होते हैं। कमीशन ने कहा कि इससे कोई फर्क नहीं पड़ता की घटना के पीछे क्या कारण हैं। उपभोक्ता का नुकसान हुआ है और क्लेम बनता है। इससे फर्क नहीं पड़ता की यह नुकसान उन्हें विश्वासघात के कारण हुआ है। 31 अक्टूबर को जस्टिस वीके जैन की ओर से सुनाए गए फैसले के अनुसार नेशनल कमीशन ने इंश्योरेंस कंपनी की पुनर्विचार याचिका को खारिज करते हुए सुरना को उनका क्लेम देने के निर्देश दिए।