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फरेब हैं किसानों के नाम पर लाई केंद्र की योजनाएं : शिवकुमार कक्काजी

एक बार शहर के लोग गांव आ कर देखें कि किसान किस हालत में रह रहे हैं, इसलिए हमने देश भर में ‘गांव बंद आंदोलन’ किया

Jun 06, 2018 / 07:47 pm

Mukesh Kejariwal

Shivkumar Kakkaji

फरेब हैं किसानों के नाम पर लाई केंद्र की योजनाएं : शिवकुमार कक्काजी

किसानों के आंदोलन, सरकार के दावों और अन्नदाता के नाम पर होने वाली राजनीति पर किसान नेता और 150 से ज्यादा किसान संगठनों के ‘राष्ट्रीय किसान महासंघ’ के संयोजक शिवकुमार कक्काजी से विस्तृत बातचीत के अंश-

प्रश्न- पंजाब के किसान आपके गांव बंद आंदोलन से अलग हो गए हैं…

पंजाब में दूध का काम बहुत बड़े स्तर पर होता है और उसे स्टोर करने की क्षमता नहीं है। ऐसे में उसे गांव में रखना मुश्किल हो रहा था।

प्रश्न- अपने उत्पादों को शहर नहीं जाने देने के पीछे विचार क्या है?

साल में 365 दिन हम शहरों में घंटी बजा कर दूध देते हैं, आवाज लगाकर सब्जी देते हैं। यही विनती की है कि एक बार शहर के लोग गांव आ कर देखें कि किस हालत में हम जी रहे हैं।

प्रश्न- जिस तरह से राहुल गांधी पहुंचे हैं, कांग्रेस किसानों के आंदोलन को हाईजैक तो नहीं कर रही?

राहुल जी का कार्यक्रम पूरी तरह अलग है। उससे हमारा दूर-दूर तक कोई संबंध नहीं। राजनीतिक लोग ऐसे आंदोलनों में अपने-अपने हिसाब से भूमिका निभाते हैं। पिछले साल मंदसौर में गोली चली तो अगर कांग्रेस या कोई पार्टी गोली चलने के बाद भी सक्रिय नहीं हुई तो कौन वोट देगा उन्हें।

प्रश्न- इस बार किसानों पर गोली नहीं चले, इसके लिए…

हमने बहुत बारीक अध्ययन करके और यह ध्यान में रख कर ही पूरी रणनीति बनाई है। हम गांव से शहर नही जाएंगे। कहीं भी बड़ी संख्या में भीड़ इकट्ठा नहीं होगी। गांव के अंदर कोई बाहर का आदमी उपद्रव करेगा तो उसकी पहचान हो जाएगी।

प्रश्न- किसानों को लागत की डेढ़ गुना कीमत दिलाने के अपने वादे में सरकार कितनी कामयाब हुई है?

मैं 47 साल से किसानों के बीच काम कर रहा हूं। देश की पहली केंद्र सरकार है जिसने चार वर्ष में 28 जबर्दस्त किसान विरोधी निर्णय लिए हैं। आत्महत्या में 43 फीसदी वृद्धि होना छोटी बात नहीं है।

मोदीजी ने आते ही किसानों को गेहूं और धान पर मिलने वाले सौ रुपये के बोनस को बंद कर दिया। भूमि अधिग्रहण अध्यादेश ले आई। हमें गेहूं के आयात की जरूरत नहीं। लेकिन आयात शुल्क 35 प्रतिशत से जीरो कर दिया। गेंहूं पैदा करने वाले किसान को रेट मिलना बंद हो गया। ऐसा ही चना, तूअर सबके साथ हुआ।

प्रश्न- सरकार को बाजार की महंगाई का भी ध्यान रखना होता है

नहीं यह सिर्फ देखने की बात है। ठीक है कि आपकी जिम्मेदारी है कि जनता को सस्ते दर पर अनाज मिलना चाहिए। तो दो रुपये गेंहूं, एक रुपये चावल दे ही रहे हैं। मगर खेती की लागत भी बढ़ा रहे हैं और बाजार भी घटा रहे हैं।

प्रश्न- फसल बीमा योजना को ले कर कितने संतुष्ट हैं?

इससे बड़ा फरेब कोई नहीं है। यह किसान नहीं कंपनियों के हित में हैं और आधी कंपनियां विदेशी हैं। सरकार ने बीमा के प्रीमियम के नाम पर 27,000 करोड़ किसानों से वसूल लिए हैं और सिर्फ 7000 करोड़ उनको भुगतान किया है। हिसाब लगा लीजिए।

प्रश्न- सोइल हेल्थ कार्ड का लाभ किसानों को मिलने लगा?

ये हेल्थ कार्ड पूरे फर्जी हैं। मध्य प्रदेश का उदाहरण दूं। 15 साल हो गए एलान हुए। 10 प्रतिशत भी नहीं बना पाए हैं। फिर सवाल है कि कार्ड बना देने से थोड़ी स्वास्थ्य ठीक हो जाएगा।

प्रश्न- राजस्थान में किसानों की कर्ज माफी को ले कर तो आप खुश हैं?

देखना होगा कि केवल घोषणा है या हकीकत में मिलेगा। ऐसे सर्टिफिकेट तो किसान ऐसे कई बार ले चुके हैं। मगर बैंक वाले बोलते हैं कि माफ नहीं हुआ है। चुनाव के दौरान ऐसी नौटंकियां बहुत होती हैं।

प्रश्न- कर्ज माफी क्या किसानों की समस्या का सही समाधान है?

हम शुरू से कह रहे हैं कि किसान कर्ज माफी नहीं चाहता। जब तक लागत के आधार पर डेढ़ गुना रिटर्न नहीं मिलेगा, कर्ज माफी कितनी बार भी कर दें, उसका कोई फायदा नहीं है।

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