बुधवार को सुबह 10.30 बजे अधिवक्ता सुनील फर्नांडिज ने इस मामले की तत्काल सुनवाई की मांग उठाई और मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा, न्यायाधीश एएम खानविल्कर और डीवाई चंद्रचूड की खंडपीठ ने दोपहर 2 बजे इसकी सुनवाई तय की.
वरिष्ठ अधिवक्ता इंदिरा जयसिंह ने बताया कि 26 वर्षीय युवती का उसके अभिभावकों और भाई ने शारीरिक और मानसिक शोषण किया. इतना ही नहीं उन्होंने युवती को धमकाया भी कि अगर वो घरवालों की मर्जी के खिलाफ अपने प्रेमी से विवाह करेगी तो उसका बलात्कार करवा दिया जाएगा. पुलिस में शिकायत देने के बावजूद उसे 14 मार्च को जबरन शादी करनी पड़ी.
जयसिंह ने पुलिस और दूल्हे को भेजे गए वो टेक्स्ट मैसेज भी दिखाए जिसमें उसने स्पष्ट रूप से बताया था कि वो शादी करने के लिए राजी नहीं है. सुप्रीम कोर्ट के फैसले का संदर्भ देते हुए उन्होंने कहा कि यह हादिया मामले का उल्टा केस है.
जयसिंह ने कहा, “इस मामले में वो अपने अभिभावकों द्वारा चुने गए व्यक्ति के साथ नहीं रहना चाहती थी और उसे शादी की रस्में पूरी करने के लिए शारीरिक शोषण का सामना करना पड़ा. क्योंकि उसने शादी के लिए अपनी रजामंदी नहीं दी थी, इसलिए इसे विवाह नहीं माना जा सकता.”
हिंदू विवाह अधिनियम का हवाला देते हुए उन्होंने कहा कि इसमें शादी को लेकर महिला की रजामंदी के संबंध में कुछ स्पष्ट नहीं है और सुप्रीम कोर्ट को यह घोषणा जरूर करनी चाहिए कि हिंदू कानून और रिवाजों के अंतर्गत होने वाले किसी भी विवाह में महिला की मान्य सहमति भी जरूर हो.
मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने कहा कि वह याचिकाकर्ता 26 वर्षीय इलेक्ट्रॉनिक्स एंड कम्यूनिकेशन इंजीनियर की शादी को शून्य करार नहीं दे सकता है. अगर वो इस शादी को रद्द करना चाहती है तो उसे सिविल कोर्ट जाना होगा.