Coronavirus Lockdown के चलते अदालतों में गंभीर मामलों के आरोपियों की अटकी जमानत
देश भर की अदालतों में Sedition-UAPA जैसे मामलों में जमानत रुकी।
Coronavirus Lockdown के चलते यात्रा प्रतिबंध और सुनवाई में देरी।
कई मामलों के आरोपी जमानत के अभाव में लंबे वक्त से जेलों में बंद हैं।
नई दिल्ली। देश भर की अदालतों में COVID-19 महामारी के चलते वीडियो-कॉन्फ्रेंसिंग के जरिये केवल “तत्काल मामलों” की सुनवाई हो रही है। लेकिन देशद्रोह और कठोर गैरकानूनी गतिविधियां रोकथाम अधिनियम ( UAPA ) जैसे गंभीर आरोप वाले मामलों में डाली गईं जमानत याचिकाएं अटक चुकी हैं।
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक नागरिकता संशोधन अधिनियम ( CAA ) और प्रस्तावित राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर के विरोध के दौरान सरकार द्वारा लगाए गए लगभग सभी राजद्रोह के मामलों में एक जैसा पैटर्न देखने को मिला।
इनमें 20 फरवरी को गिरफ्तार की गई 19 वर्षीय अमूल्या लियोना ( Amulya Leona ) का मामला हो या फिर 15 फरवरी को कर्नाटक के हुबली में गिरफ्तार किए गए तीन कश्मीरी इंजीनियरिंग छात्रों का, 15 फरवरी को आजमगढ़ में UAPA के तहत 19 लोगों की गिरफ्तारी का मामला हो या 12 दिसंबर को गिरफ्तार असम के कार्यकर्ता अखिल गोगोई के खिलाफ मामला, अदालतों ने इन मामलों को “तत्काल” के रूप में प्राथमिकता नहीं दी है और इसके चलते उनकी जमानत याचिकाएं तकरीबन अनसुनी हो गई हैं।
बीते 12 अप्रैल को लियोना की जमानत की याचिका के जवाब में बेंगलूरु अदालत के एक अधिकारी ने ईमेल में लिखा, “श्रीमान, अत्यधिक जल्दबाजी की मांग नहीं की गई है।” CAA के विरोध में एक रैली में पाकिस्तान समर्थित नारे लगाने के आरोप में लियोना को बेंगलूरु पुलिस ने आईपीसी की धारा 124 (देशद्रोह) के तहत गिरफ्तार किया था।
सत्र अदालत द्वारा अप्रैल में उसकी जमानत याचिका पर सुनवाई नहीं करने के बाद लियोना ने कर्नाटक उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया था, लेकिन विस्तृत सुनवाई नहीं हुई। सोमवार को तीन महीने जेल में बिताने के बाद लियोना ने फिर से सेशन कोर्ट में मामले को स्थानांतरित करने के लिए उच्च न्यायालय से अपनी जमानत याचिका वापस ले ली।
केवल तत्काल मामलों की ही सुनवाई चूंकि देश भर में लॉकडाउन दो महीने से ज्यादा पहले शुरू हुआ था, इसलिए अदालतें केवल “तत्काल” मामलों की सुनवाई कर रही हैं, जिसमें वकीलों को अपना केस तत्काल सुनवाई के लिए पेश किया जाना चाहिए। हालांकि ऐसे मामलों की कोई निश्चित सूची नहीं है जिन्हें “तत्काल” के रूप में योग्य माना जाए, लेकिन अदालतों ने अक्सर ऐसे मामलों को प्राथमिकता दी है जो जीवन और स्वतंत्रता के अपरिवर्तनीय नुकसान को रोकते हैं। मृत्युदंड, जमानत और बेदखली के मामलों में भी तत्काल सुनवाई की जाती है।
कश्मीरी छात्रों का मामला कथित रूप से पाकिस्तान समर्थक नारे लगाने के लिए राजद्रोह के आरोप में गिरफ्तार किए गए तालिब मजीद, बासित आसिफ सोफी और अमीर मोहिउद्दीन वाही नामक तीन कश्मीरी छात्रों के मामले में 9 मार्च को जिला अदालत ने जमानत याचिका खारिज कर दी थी। इसके बाद उन्होंने कर्नाटक उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया।
16 अप्रैल को पहली सुनवाई में एकल-न्यायाधीश पीठ ने कहा कि इसमें राजद्रोह का मामला नहीं बनाया जा सकता है। न्यायमूर्ति जी नरेंद्र ने विशेष अभियोजक को एक सप्ताह का समय देते हुए कहा था कि प्रथम दृष्टया शिकायत में किसी भी ऐसी सामग्री का खुलासा नहीं किया गया जिसे अपराध के रूप में माना जाए। विशेष अभियोजक ने देरी के लिए लॉकडाउन का जिक्र करते हुए कुछ वक्त की मोहलत मांगी थी।
28 अप्रैल को अगली सुनवाई में मामले को एक नए न्यायाधीश के सामने पेश किया गया, जिन्होंने सुनवाई को 30 अप्रैल तक के लिए स्थगित कर दिया क्योंकि वीडियो कॉनफ्रेंसिंग के दौरान याचिकाकर्ता के वकील की आवाज नहीं आ रही थी। अगली सुनवाई में जब विशेष अभियोजक ने जमानत देने पर आपत्ति जताई तो मामला 5 मई तक के लिए स्थगित कर दिया गया।
मामले में अंतिम सुनवाई होनी बाकी है क्योंकि आवेदन में कुछ तकनीकी कमियों को ठीक नहीं किया गया है। अदालत ने अब दोनों पक्षों को कमियों को ऑनलाइन सुधारने की अनुमति दी है क्योंकि वे अदालत तक आने में असमर्थ हैं।
बेंगलुरु के अधिवक्ता बीटी वेंकटेश ने कहा, “यह सबसे दुर्भाग्यपूर्ण है कि इन मामलों की सुनवाई से इनकार कर दिया जाता है जबकि देशद्रोह के नए मामले तत्काल सुनवाई के अंतर्गत दायर किए जाते हैं।”
आजमगढ़ में सीएए विरोध का मामला आजमगढ़ मामले में CAA विरोध प्रदर्शन के मद्देनजर छेड़खानी के आरोपी 19 लोग मार्च में जिला अदालत द्वारा जमानत याचिका खारिज किए जाने के बाद जेल में हैं। लॉकडाउन के कारण यात्रा प्रतिबंधों के चलते वे पिछले सप्ताह तक इलाहाबाद हाई कोर्ट जाने में असमर्थ थे। अभी मामले को वहां सूचीबद्ध किया जाना बाकी है।
उनकी वकील तल्हा रशीद ने कहा, “जब तालाबंदी की घोषणा की गई थी हमने मुख्य न्यायाधीश को एक पत्र लिखा था, लेकिन अब हमने जमानत याचिका दायर कर दी है।” असम का मामला
असम में सीएए विरोधी प्रदर्शनों में भूमिका के लिए कार्यकर्ता अखिल गोगोई के खिलाफ राजद्रोह के एक मामले की सुनवाई राष्ट्रीय जांच एजेंसी के न्यायाधीश कर रहे हैं। 12 दिसंबर को गिरफ्तार गोगोई को 23 मार्च को जमानत पर रिहा कर दिया गया था, क्योंकि एनआईए निर्धारित 90 दिनों के भीतर आरोप पत्र दायर करने में विफल रही थी। हालांकि, सीएए विरोध से संबंधित दिसंबर में दायर एक अन्य मामले में गोगोई को तुरंत गिरफ्तार कर लिया गया था। उन पर UAPA के तहत भी आरोप लगाए गए हैं।
UAPA के तहत किसी व्यक्ति को बिना जमानत के 90 दिनों तक हिरासत में रखा जा सकता है और अभियोजक के अनुरोध पर हिरासत को 180 दिनों तक बढ़ाया जा सकता है। COVID-19 महामारी के मद्देनजर इन मामलों की सुनवाई में देरी होने के बावजूद देश भर में राजद्रोह के नए मामले दर्ज कर गिरफ्तारियां की गई हैं।
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