ये हैं “अनाथों की मां” सिंधुताई, भीख मांग कर सैंकड़ों बच्चों को पाला
सिंधुताई सपकाल एक नाम से कही ज्यादा है, अपनी इस स्ट्रॉन्ग पर्सनालिटी के
पीछे 68 वर्षीय सिंधुताई ने कई कहानियां छिपा रखी है
नई दिल्ली। सिंधुताई सपकाल एक नाम से कही ज्यादा है। अपनी इस स्ट्रॉन्ग पर्सनालिटी के पीछे 68 वर्षीय सिंधुताई ने कई कहानियां छिपा रखी है। सिंधुताई को आमतौर पर “अनाथों की मां” कहा जाता है, लेकिन जब आप उनके खुद के जीवन की कहानी सुनेंगे तो आपकी आंखे नम होना लाजमी है। सिंधुताई का जन्म 14 नवंबर, 1948 में पिंप्री मेघे गांव में हुआ था। वह कहती है कि जिनका कोई नहीं है उनके लिए मैं हूं।
इस तरह बनी बेसहारों की मां
सिंधुताई को अवांछित बच्चे के रूप में देखा गया और इसी के चलते उनका निकनेम “चिंढी” रखा गया। आपको बता दें कि चिंढी कपड़े एक फटे हुए टुकड़े कहा जाता है। हालांकि सिं धुताई के पिता ने उनका समर्थन किया और उनकी पढ़ाई पर भी जोर देने की कोशिश की, लेकिन उन्होंने परिवार की जिम्मेदारी और कम उम्र में शादी हो जाने के कारण वह चौथी क्लास तक ही पढ़ सकी। उनकी शादी 10 वर्ष की उम्र में हो गई थी।
उनके शराबी पति ने उन्हें उस समय पर पीट-पीट कर घर से निकाल दिया था, जब वे 20 वर्ष की थी और नौ महीने की प्रेगनेंट थी। उन्होंने एक तबेले में अपनी बेटी को जन्म दिया था। इस घटना के बाद वे आत्महत्या कर लेना चाहती थी, लेकिन उन्होंने ये खयाल छोड़ रेलवे प्लेटफॉर्म पर अपनी और अपनी बेटी के पालन पोषण के लिए भीख मांगना शुरू कर दिया था।
क्यों कहा जाता है अनाथों की मां
जब सिंधुताई ने भीख मांगी शुरू की उसके कुछ समय बाद उन्हें एहसास हुआ कि अनाथ और मां-बाप द्वारा छोड़े गए ऎसे बहुत से बच्चों होंगे। इस तरह के हालातों का खुद सामना कर सिंधुताई को ऎसे बच्चों का दुख अच्छे से पता था। इसी के चलते उन्होंने ऎसे सभी बच्चों को एडॉप्ट करने का फैसला किया। इन बच्चों को पालन-पोषण के लिए उन्होंने पहले से ज्यादा भीख मांगी। इसी कारण उन्हें “अनाथों की मां” कहा जाता है।
1500 अनाथों का कर रही है पालन-पोषण
मिली जानकारी के अनुसार मौजूदा समय में सिंधुताई ने करीब 1500 अनाथ बच्चों का लालन-पालन कर रही हैं। वे इन बच्चों का पढ़ने-लिखने, शादी करने और अपने जीवन में सेटल होने के समय तक साथ रहती है। बच्चें उन्हें “माई” कहकर पुकारते हैं। सिंधुताई द्वारा एडॉप्ट किए गए कई बच्चे आज डॉक्टर, इंजीनियर और वकील हैं। अपने इस प्रयास के लिए उन्हें अभी तक करीब 500 पुरस्कारों से सम्मानित किया जा चुका है।
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