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उतराखंड बनता जा रहा है घोस्ट विलेज का गढ़, भयावह हैं पलायन के आंकड़े

गांवों में कोई नहीं रहता और वहां के घर खंडहर में तब्दील हो गए हैं।

नई दिल्लीJan 03, 2018 / 10:57 am

Priya Singh

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नई दिल्ली। उत्तराखंड के थल्डा गांव में अपने वंडोड़ा में बैठे गजेन्द्र सिंह, बताते हैं, तीन साल पहले उन्होंने दिल्ली में पहाड़गंज इलाके में सेक्सोलॉजिस्ट के तौर पर काम किया। खेती शुरू करने के लिए वह पहाड़ियों पर बसे अपने घर लौटे। वहीँ एक बुज़ुर्ग कहती हैं, “हमने अपने बच्चों को पढ़ाया लिखाया बड़ा किया कृषि से हमारी आय के साथ उनकी शादी भी की।” लेकिन अब हम पूरी तरह से अपने बच्चों द्वारा भेजे गए पैसों पर निर्भर हैं जिनके पास बड़े शहरों में बसा है पिछले आठ से 10 वर्षों के लिए ग्रामीणों द्वारा खेती की जाने वाली लगभग सभी जमीनएं बंजर हो गई हैं और कृषि आय शून्य से नीचे आ गई है।”
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पलायन की मार झेल रहे उत्तराखंड के कई गांव लगातार खाली हो रहे हैं। 2011 की जनगणना के अनुसार आंकड़े बताते हैं कि पलायन के चलते 2.85 लाख घरों में ताले लटके हैं। यही नहीं, 968 गांव भुतहा घोषित किए जा चुके हैं। यानी इन गांवों में कोई नहीं रहता और वहां के घर खंडहर में तब्दील हो गए हैं। दो हजार के लगभग गांव ऐसे हैं, जिनके बंद घरों के दरवाजे पूजा अथवा किसी खास मौके पर ही खुलते हैं। इस सबका का असर खेती पर भी पड़ा है।
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2011 की जनगणना के अनुसार, पौड़ी गढ़वाल क्षेत्र के सातपुली तहसील में थल्डा गांव में 52 घर और 175 की आबादी थी। आज ग्रामीणों का कहना है कि बस 30 से ज्यादा परिवार यहां रहते हैं और जनसंख्या 100 से कम है। पिछले कुछ वर्षों में रोज़गार, बेहतर शिक्षा और स्वास्थ्य सेवा की खोज के लिए निवासियों के बीच बड़े शहरों में प्रवास के एक सतत प्रवाह का साक्षी है। 2011 की जनगणना के अनुसार, टॉली में 27 परिवार थे और 72 की आबादी थी। वर्तमान में, ग्रामीण इलाकों में 50 से कम लोग हैं। यहां काफी हद तक सिर्फ बुजुर्ग ही बचे हैं।
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टॉली में सबसे पुराने घरों में से एक है घर है, अनिल धसमाना, जिसे दिसंबर में भारत की बाहरी खुफिया एजेंसी रिसर्च एंड एनालिसिस विंग के प्रमुख का नाम दिया गया था। जिस घर में उन्होंने अपना बचपन बिताया था वह सौ साल पुराना है और गांव के प्रवेश द्वार से एक विशाल चढ़ाई पर स्थित है। सरकार भी मानती है कि राज्य गठन से अब तक 70 हजार हेक्टेयर कृषि भूमि बंजर में तब्दील हो गई है। हालांकि, गैर सरकारी आंकड़ों पर गौर करें तो बंजर कृषि भूमि का रकबा एक लाख हेक्टेयर से अधिक है। 
अब सरकार ने गांवों में पलायन को रोकने के लिए हाथ पैर मार रही है। मौजूदा सरकार ने गांव की जड़ यानी किसान को ध्यान में रखकर प्रत्येक विकासखंड में एक मॉडल गांव विकसित करने की योजना बनाई है। वैसे भी सरकार 2022 तक किसानों की आय दोगुना करने की कोशिशों में जुटी है।
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