मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक मो. इम्तियाजुर रहमान कलकत्ता यूनिवर्सिटी में पर्सियन पढ़ाते थे और निवेदिता ने बंगाली में अपनी मास्टर्स की डिग्री पूरी की थी। निवेदिता की मौत के बाद दिल्ली के निगम बोध घाट पर उनका अंतिम संस्कार किया गया। लेकिन परिवार निवेदिता का श्रद्धा संस्कार नहीं कर पा रहा है क्योंकि एक मंदिर की संस्था ने उनकी बुकिंग निरस्त कर दी। हालांकि बुधवार को एक सामाजिक-सांस्कृतिक संस्था ने आगे आकर उन्हें इस संस्कार को पूरा करने में मदद करने का भरोसा दिया।
मीडिया से बातचीत में कोलकाता के मो. इम्तियाजुर रहमान ने कहा, “हमनें चितरंजन पार्क काली मंदिर सोसाइटी में 6 अगस्त को एक बुकिंग कराई थी और श्रद्धा संस्कार के लिए 1,300 रुपये का शुल्क भी चुकाया था। 12 अगस्त को यह आयोजन किया जाना था। लेकिन उसी दिन बुकिंग कराने के घंटे भर बाद मुझे सोसाइटी के कार्यालय से फोन आया। दूसरी ओर से बोल रहे व्यक्ति ने कई बार मेरा नाम पूछा। इसके बाद उसने कहा कि उनकी संस्कार क्रियाएं नहीं कराई जा सकतीं। जब मैंने उनसे कारण पूछा तो उन्होंने बंगाली में बोला, ‘आपनी बुझे निन (आप अच्छी तरह समझ सकते हैं)’।”
उन्होंने आगे कहा, “फोन करने वाले ने यह भी कहा कि आकर जमा की गई रकम वापस ले लीजिए। मैंने यह कहते हुए मना कर दिया कि यह रकम मैंने अपनी बीवी की श्रद्धा के लिए जमा कराई थी और वो इसे रख सकते हैं।” मंदिर में यह बुकिंग इम्तियाज ने अपनी बेटी इहीनी अंब्रीन के नाम पर कराई थी।
इम्तियाजुर पश्चिम बंगाल में व्यावसायिक कर विभाग में उपायुक्त के रूप में नौकरी करते हैं। निवेदिता कोलकाता के स्कूल में बंगाली और संस्कृत पढ़ाती थीं। वहीं, यह रस्म क्यों नहीं पूरी कराई गई के जवाब में सीआर पार्क काली मंदिर सोसाइटी के अध्यक्ष अशित्व भौमिक कहते हैं, “हम मंदिर के संरक्षक हैं और हर दो साल में चुने जाते हैं। हम हिंदू धर्म के नियम नहीं बदल सकते। हालांकि, मैं इस मामले की तहकीकात करूंगा और रस्म को निरस्त किए जाने के पीछे का कारण पता करूंगा।”
वहीं, निवेदिता की बहन कृतिका जिसने करीब दो सप्ताह पहले दिल्ली के एक बड़े अस्पताल में अपना लीवर डोनेट किया था, मंदिर सोसाइटी प्रबंधन के बयान पर कहती हैं, “निगम बोध घाट पर अंतिम क्रिया बिना किसी दिक्कत के पूरी हुई। मेरे अलावा, मेरे जीजा की ओर से सभी लोग मौजूद थे। जिन्होंने अंतिम संस्कार की रस्म निभाई वो सभी मुसलमान थे। किसी ने भी हमसे कोई सवाल नहीं पूछा। “
वहीं, इम्तियाजुर कहते हैं कि धर्म एक निजी मामला है। उन्होंने कहा, “मेरी बीवी कर्मकांड में आस्था रखने वाली हिंदू थी और मैं सबकुछ वैसे ही करना चाहता हूं जैसा वो चाहती थी।” वहीं, कृतिका कहती हैं, “उन दोनों ने हमेशा एक-दूसरे के धर्म का सम्मान किया।” जबकि 12वीं में पढ़ने वाली निवेदिता-इम्तियाजुर की बेटी इहीनी ने कहा, “मेरी मां केवल 46 साल की थी। अंतिम इच्छा के बारे में सोचने के लिए उनकी उम्र बहुत कम थी। लेकिन जिस तरह की जिंदगी उन्होंने जी थी, उसे देखकर लगता था कि वो ऐसा ही अंतिम संस्कार चाहती थीं।”
इम्तियाजुर और उनका परिवार कोलकाता में रहता है। दो माह पहले ही निवेदिता के इलाज के लिए उन्होंने दिल्ली में एक फ्लैट किराये पर लिया था। चूंकि अब कृतिका डॉक्टरों की देख-रेख में है इसलिए उन्होंने यहां अपनी रुकने की अवधि बढ़ानी पड़ी। पिछले कुछ दिनों से कृतिका और इम्तियाजुर अंतिम रस्म निभाने के लिए तमाम संस्थाओं से मुलाकात कर रहे हैं।
हालांकि बुधवार को एक अच्छी खबर यह आई कि एक बंगाली सामाजिक-सांस्कृतिक संस्था ने उन्हें फोन कर इस रस्म को निभाने की बात कही।