गृह मंत्री और चुनाव आयोग भी दे चुके हैं आश्वासन गौरतलब है कि इससे पहले केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह भी ऐसा ही बयान दे चुके हैं। वहीं मुख्य चुनाव आयुक्त ओमप्रकाश रावत भी साफ कर चुके हैं कि जिन लोगों का नाम एनआरसी के ड्राफ्ट में नहीं हैं उन्हें भी कुछ दस्तावेजों के साथ मतदान का अधिकार रहेगा। आपको बता दें कि असम में अवैध बांग्लादेशियों को हटाने के लिए केंद्र सरकार ने एनआरसी को अपडेट करने की पहल की है। इसके चलते असम में रह रहे करीब 40 लाख लोगों पर देश से निकाले जाने का खतरा मंडरा गया है, हालांकि केंद्र सरकार ने अभी अपील करने की व्यवस्था रखी है। फिलहाल असम देश का एकमात्र राज्य है जहां सिटिजनशिप रजिस्टर की व्यवस्था है।
क्या है एनआरसी? 1971 में पाकिस्तान से आजाद होकर बांग्लादेश अलग देश बना था। तभी से कई लोग अवैध तरीकों से भारत में आकर बसने लगे। 80 के दशक में अखिल असम छात्र संघ और असम गण परिषद के आंदोलन ने जोर पकड़ लिया। 1985 तत्कालीन राजीव गांधी सरकार और आंदोलनकारियों के बीच एक समझौता हुआ था। इसके तहत केंद्र ने आश्वासन दिया था कि अवैध बांग्लादेशियों को बाहर किया जाएगा। 15 अगस्त 1985 को तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने असम अकॉर्ड की घोषणा की थी। 1985 से लागू असम समझौते के अनुसार 24 मार्च 1971 की मध्य रात्रि तक असम में प्रवेश करने वाले लोगों और उनकी पीढ़ियों को भारतीय नागरिक माना जाएगा। लेकिन यह समझौता लागू नहीं हो पाया था।