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राजनीतिक दलों को विपक्ष में आते ही भाते हैं ये तीन अधिकारी

हमेशा चर्चा में रहे हैं खेमका,कासनी व संजीव चतुर्वेदी, हर पद पर भ्रष्टाचार के खिलाफ उठाते रहे हैं आवाज

Apr 03, 2015 / 07:21 pm

युवराज सिंह

चंडीगढ़। हरियाणा कैडर के तीन अधिकारी ऐसे हैं जो विपक्ष में रहते हुए राजनीतिक दलों की पहली पसंद होते हैं और सत्ता में आते ही अंतिम सीट पर बिठा दिया जाता है। पिछले पंद्रह वर्षों के दौरान प्रदेश सरकार के कार्यकाल पर अगर नजर दौड़ाई जाए तो आईएएस अधिकारी अशोक खेमका, प्रदीप कासनी तथा आईएफएस अधिकारी संजीव चतुर्वेदी हमेशा चर्चा में रहे हैं। उक्त तीनों अधिकारियों ने किसी भी पद पर रहते हुए जहां भ्रष्टाचार के खिलाफ अपनी आवाज बुलंद की है वहीं राजनीति दलों ने सत्ता में आते ही इनसे मुंह मोड़ा है।

वर्ष 1991 बैच के आईएएस अधिकारी अशोक खेमका अपने 22 वर्ष के कार्यकाल में 46 तबादले झेल चुके हैं। हरियाणा की पूर्व चौटाला सरकार के कार्यकाल में अब खेमका ने अव्यवस्था के खिलाफ अपनी आवाज उठाई तो तत्कालीन सरकार ने कथित तौर पर उन्हें प्रताडि़त करना शुरू कर दिया। जिसके चलते वह पैदल ही सचिवालय में पहुंच गए थे।

चौटाला सरकार के कार्यकाल के दौरान कांग्रेस के नेता अशोक खेमका के समर्थन में राजनीतिक बयान जारी करते थे। इसके बाद जब सत्ता परिवर्तन हुआ तो अशोक खेमका ने हुड्डा सरकार में वाड्रा-डीएलएफ डील को रद्द कर दिया और विवादों में घिर गए। जिसके चलते पूर्व सरकार ने उन्हें खुड्डे लाइन पोस्ट पर तैनात कर दिया और भाजपा खेमका के समर्थन में आ गई।

भाजपा ने तो बकायदा कांग्रेस के खिलाफ और खेमका के समर्थन में अभियान चलाया था। इसके बाद प्रदेश में फिर से सत्ता परिवर्तन हुआ और अब कथित तौर पर ट्रांसपोर्ट लॉबी के दबाव में भाजपा सरकार ने अशोक खेमका को फिर से खुड्डे लाइन लगा दिया है। अब खेमका के तबादले को लेकर भाजपा जहां आपस में बंटी हुई है वहीं कांग्रेस दबी-दबी आवाज में खेमका का समर्थन करने की बजाए भाजपा का विरोध कर रही है। इस मामले में बकायदा कपिल सिब्बल भी अपना बयान दे चुके हैं।

कमोबेश ऐसी ही स्थिति आईएएस अधिकारी प्रदीप कासनी की है। कासनी 1997 बैच के आईएएस अधिकारी हैं। खेमका की तरह कासनी भी 30 वर्ष की नौकरी में 62 तबादलों को झेल चुके हैं। पूर्व सरकार के कार्यकाल में कासनी अधिकतर समय खुड्डे लाइन ही रहे हैं। पूर्व कांग्रेस सरकार के कार्यकाल के अंतिम समय में तो कासनी व सरकार आमने-सामने हो गए थे। उस दौर में भाजपा ने कासनी का समर्थन किया था। भाजपा की सरकार आते ही यह चर्चा थी प्रदीप कासनी को बेहतर पोस्टिंग मिल सकती है। सरकार ने उन्हें लगाया भी लेकिन एक भूमि विवाद के बाद कासनी सरकार की आंखों में अटकने लगे और उन्हें एक माह से अधिक समय तक बगैर पोस्टिंग के बिठाया गया। कासनी इस समय स्वास्थ्य विभाग का जिम्मा संभाल रहे हैं। यहां भी उनके साथ कई विवाद चल रहे हैं।

हरियाणा के तीसरे आईएफएस अधिकारी संजीव चतुर्वेदी भी लंबे समय से चर्चा में हैं। चतुर्वेदी जब तक हरियाणा में रहे तब तक वन विभाग में फैले कथित भ्रष्टाचार को उजागर करने को लेकर चर्चा में रहे। पूर्व कांग्रेस सरकार के कार्यकाल में चतुर्वेदी केंद्र में चले गए। वहां भी वह अपने भ्रष्टाचार विरोधी अभियान को लेकर सत्ता के गलियारों का केंद्र बिंदु बने हुए हैं। संजीव चतुर्वेदी का एक मामला तो राष्ट्रपति कार्यालय तक पहुंच चुका है। मौजूदा समय में भी आईएफएस संजीव चतुर्वेदी का विवाद दिल्ली तथा केंद्र सरकार के बीच चल रहा है।

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