नई दिल्ली। निजता का अधिकार मौलिक अधिकार है या नहीं इस मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट में 9 जजों की संवैधानिक पीठ में सुनवाई हुई। महाराष्ट्र सरकार ने कहा कि कोर्ट निजता के अधिकार को संविधान के तहत मौलिक अधिकार के रूप में शामिल नहीं कर सकती हैं, यह अधिकार सिर्फ संसद के पास है।
संसद ही कर सकती है बदलाव
निजता के अधिकार विधायी अधिकार हैं, ये मौलिक अधिकार नहीं हैं। संसद चाहे तो संविधान में इसके लिए बदलाव कर सकती है। निजता को अन्य विधायी कानून के तहत संरक्षित किया गया है। महाराष्ट्र की ओर से वरिष्ठ वकील सीए सुंदरम ने दलीलें दीं।
वहीं यूआईडीएआई की ओर से एडिशनल सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि आधार में जो डाटा लिया गया है उसका इस्तेमाल कर अगर सरकार सर्विलांस भी करना चाहे तो असंभव है, आधार एक्ट कहता है डेटा पूरी तरह से सुरक्षित है। तुषार मेहता ने कहा कि अगर निजता के अधिकार को मौलिक अधिकार बनाया जाता है तो लोकहित और अच्छा प्रशासन बुरी तरह से प्रभावित होगा। देश की बहुसंख्यक जनता गरीबी रेखा के नीचे हैं और उनके पास आधार कार्ड है। तब कोर्ट ने कहा कि यह मामला आधार पर बहस का नहीं है।
ऐसे तो आधार खत्म हो जाएगा
तब एडिशनल सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि वह सिर्फ चिंता जता रहे हैं कि अगर निजता मौलिक अधिकार होगा तो आधार खत्म हो जाएगा। इस पर जस्टिस नरिमन ने कहा कि हम आधार को खत्म नहीं करने जा रहे हैं बल्कि हम निजता के मामले को लेकर इस मामले में संतुलन की कोशिश कर रहे हैं।