गृह राज्य मंत्री ने कहा कि बीते तीन सालों में गृह मंत्रालय द्वारा मंजूर किए गए 157 एमपीवी में से सिर्फ 13 की आपूर्ति अब तक ऑर्डिनेंस फैक्ट्री बोर्ड द्वारा सीएपीएफ को की गई है। ऑर्डिनेंस फैक्ट्री बोर्ड एक औद्योगिक संगठन है जो रक्षा मंत्रालय के रक्षा उत्पादन विभाग के तहत काम करता है। अहिर ने कहा कि गृह मंत्रालय ने रक्षा मंत्रालय/ऑर्डिनेंस फैक्ट्री बोर्ड से एपीवी की शीघ्र आपूर्ति करने का अनुरोध किया है। इस तरह की वस्तुओं का अधिग्रहण एक सतत प्रक्रिया है। किसी भी उपकरण की वास्तविक खरीदारी परिचालन जरूरतों व धन की उपलब्धता के आधार पर की जाती है।
यह जानकारी छत्तीसगढ़ के सुकमा जिले के किस्ताराम इलाके में केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ) के 212 बटालियन के नौ कर्मियों के 13 मार्च को मारे जाने के बाद दी गई है, जिसमें इम्प्रोवाइज्ड एक्सप्लोसिव डिवाइस का इस्तेमाल कर नक्सलियों ने एमपीवी को उड़ा दिया था।
इससे पहले 13 मार्च को रक्षा मंत्रालय से संबद्ध संसद की स्थायी समिति की रिपोर्ट में कहा गया कि हथियारों का सबसे बड़ा आयातक होने के बावजूद भारतीय सेना के पास दो-तिहाई से अधिक यानी 68 प्रतिशत हथियार और उपकरण पुराने हैं और केवल 8 प्रतिशत ही अत्याधुनिक हैं।
हालत यह है कि सेना के पास जरूरत पड़ने पर हथियारों की आपात खरीद और दस दिन के भीषण युद्ध के लिए जरूरी हथियार तथा साजो-सामान तथा आधुनिकीकरण की 125 योजनाओं के लिए भी पर्याप्त पैसा नहीं है। दो मोर्चों पर एक साथ युद्ध की तैयारी के नजरिये से भी सेना के पास हथियारों की कमी है और उसके ज्यादातर हथियार पुराने हैं