वैसे, गलवान की घटना में जहां 20 भारतीय सैनिक शहीद हो गए थे वहीं, ऐसा दावा किया जाता रहा है कि चीन के करीब चार दर्जन सैनिक भी मारे गए थे, लेकिन चीन ने कभी इसे स्वीकार नहीं किया। हां, उसकी जनता और मारे गए सैनिकों के परिजन जरूर अक्सर वहां की सरकार को उसकी नीतियों को लेकर खरी-खोटी सुनाते रहते है और खुद अपनी सरकार की पोल खोलते हैं।
इस बीच, रूस की समाचार एजेंसी टीएएसएस (TASS) ने भी दावा किया है कि गलवान घाटी में हुई झड़प में चीन के कम से कम 45 सैनिक मारे गए थे। उल्लेखनीय है कि रूसी समाचार एजेंसी टीएएसएस ने ही भारतीय और चीनी सैनिकों के पैंगोग त्सो झील के पास से सैनिकों की वापसी की बात कही थी। कई दौर की बातचीत के बाद दोनों देशों के बीच इसको लेकर हुए समझौते के तहत सैनिक पीछे हट रहे हैं। चीन के रक्षा मंत्रालय ने भी इसकी पुष्टि की है। उसके मुताबिक, कमांडर स्तर की 9वें दौर की बातचीत के दौरान दोनों देशों के बीच सैनिकों को पीछे हटाने पर सहमति बनी थी।
बहरहाल, गुरुवार को ही केंद्रीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने भी राज्यसभा में एलएसी के हालात पर बोलते हुए कहा कि भारत भी चाहता है कि ऐसे विवादित क्षेत्र से दोनों देशों की सेनाएं अपनी-अपनी स्थायी और मान्य चौकियों पर लौट जाएं। उन्होंने कहा कि बातचीत के लिए हमारी रणनीति और दृष्टिकोण प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के इस दिशा-निर्देश पर आधारित हैं कि हम अपनी एक इंच जमीन भी किसी और को नहीं लेने देंगे। रक्षा मंत्री ने यह भी कहा कि यह हमारे दृढ़ संकल्प का नतीजा है कि हम समझौते की स्थिति पर पहुंच गए हैं।