असम के लिए बांग्लादेशी घुसपैठ का मामला
ये मामला राजनीतिक तौर पर काफी संवेदनशील रहा है। वर्तमान मुख्यमंत्री सर्वानंद सोनोवाल आठवे दशक में चले उस असम आंदोलन की ही उपज है, जिसका मुख्य मुद्दा बांग्लादेशी घुसपैठ रहा है। पिछले विधानसभा चुनाव में इस समस्या का समाधान करने का वादा ही उन्हें और भाजपा को सीएम की कुर्सी तक ले गया। हालांकि, एनआरसी में अपडेशन का काम पूरी तरह सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में किया जा रहा है। इस बारे में राजनीतिक बयान देने पर अदालत ने सोनोवाल को फटकार भी लगाई थी। इसीलिए अब सबकी निगाह सुप्रीम कोर्ट के रुख पर है, जहां यह तय होना है कि क्या पंचायत सेक्रेटरी सर्टिफिकेट, जिसपर राजस्व अधिकारी के भी हस्ताक्षर होते हैं, नागरिकता पंजीकरण के लिए मान्य होंगे या नहीं। अय्युबी कहते हैं, आखिर यह कौन बता सकता है कि किसी महिला के बाबूजी कौन है? जहां उसका जन्म हुआ है, उस गांव के लोग ही ऐसा कर सकते हैं। इसीलिए आवासीय प्रमाणपत्र के रूप में इसे राज्य सरकार, केंद्र सरकार, रजिस्ट्रार जनरल ऑफ इंडिया और सुप्रीम कोर्ट ने भी स्वीकृत माना था। हाईकोर्ट ने इसे अमान्य करते हुए एकतरह से सुप्रीम कोर्ट की भी अनेदेखी की है।’
असम में यह मुद्दा इनदिनों उबाल पर है। यह माना जा रहा है कि अवैध घुसपैठ करनेवालों के लिए गांवबूढ़ा को प्रभावित कर फर्जी प्रमाणपत्र हासिल कर लेना कोई मुश्किल काम नहीं है। अय्युबी भी यह मानते हैं कि ऐसा संभव है। इसीलए वह ऐसे दस्तावेजों को री-वेरीफाइ कराने पर जोर दे रहे हैं। उधर असम में गरमाए इस मामले में पिछले दिनों मुसलिम संगठनों ने सरकार पर आरोप लगाया था कि वह राज्य में म्यामांर जैसी स्थिति उत्पन्न कर रही है। जमीयत उलेमा हिंद के अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी ने नई दिल्ली में यह बयान देकर विवाद को और बढा दिया है कि ‘यदि 50 लाख लोगों को नागरिकता रजिस्टर से बाहर किया जाता है तो राज्य जलने लगेगा। हम या तो मारेंगे या मरेंगे।’
मुस्लिम आबादी में बेतहाशा वृद्धिः –
– 2011 की सेंसस रिपोर्ट में यह पाया गया कि असम के कुछ जिलों में मुस्लिम आबाद में बेतहाशा वृद्धि हुई है। धुबरी जिले में तो यह बढ़ोतरी 80 फीसदी तक दर्ज की गई। उसके बाद यह मुद्दा एकबार फिर से गरमा गया। जिसका राजनीतिक फायदा2016 के विधानसभा चुनाव में भाजपा को मिला। विदेशी घुसपैठ पर लंबी लडाईलड़नेवाले सोनोवाल को सीएम पद का प्रत्याशी घोषित करने करनाभी एक मास्टर स्ट्रोक था।