चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा के अगुवाई वाली न्यायधीशों के संवैधानिक पीठ ने यह फैसला दिया। न्यायाधीशों की पीठ इस कानूनी सवाल को देख रही थी कि यदि कोई पारसी महिला किसी दूसरे धर्म के पुरुष से शादी कर लेती है तो क्या उसकी धार्मिक पहचान खत्म हो जाती है। पीठ में न्यायमूर्ति ए के सीकरी, एएम खानविलकर, डीवाई चंद्रचूड़ और अशोक भूषण भी शामिल थे।
संविधान पीठ ने वलसाड पारसी ट्रस्ट की ओर से पैरवी कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता गोपाल सुब्रह्मण्यम से कहा कि वह निर्देश लेकर उसको 14 दिसंबर को अवगत कराएं कि क्या इसके द्वारा हिन्दू व्यक्ति से शादी करने वाली पारसी महिला गुलरोख एम गुप्ता को उसके माता-पिता के अंतिम संस्कार में शामिल होने की अनुमति दी जा सकती है।
आपको बता दें कि गुप्ता ने गुजरात हाईकोर्ट की तरफ से साल 2010 में बरकरार रखे गए उस पारंपरिक कानून को चुनौती दी थी कि हिन्दू पुरुष से शादी करने वाली पारसी महिला पारसी समुदाय में अपनी धार्मिक पहचान खो देती है और इसलिए वह अपने पिता की मौत की स्थिति में ‘टॉवर ऑफ साइलेंस’ जाने का अधिकार खो देती है।
संविधान पीठ ने अपना फैसला सुनते हुए कहा, ‘ऐसा कोई कानून नहीं है जो यह कहता हो कि महिला किसी दूसरे धर्म के व्यक्ति से शादी करने के बाद अपनी धार्मिक पहचान खो देती है’; उन्होंने आगे कहा कि ‘ इसके अतिरिक्त विशेष विवाह कानून है और अनुमति देता है कि दो व्यक्ति शादी कर सकते हैं और अपनी-अपनी धार्मिक पहचान बनाए रख सकते हैं।’
वहीं एक दूसरे मामले में कोर्ट ने कहा कि कानूनी तौर पर अलग रह रही पत्नी भी गुजारा-भत्ता की हकदार है। उसे ऐसा करने से रोकने की कोई वजह नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि जब तलाकशुदा पत्नी को गुजारा भत्ता दिया जा सकता है तो कानूनी तौर पर अलग हुए दंपति को क्यों नहीं।