यह दुनिया की सबसे ऊंची प्रतिमा है। इस बात की संभावना है कि पटेल की याद में बना ये प्रतिमा बहुत जल्द दुनिया का एक अजूबा बन जाएगा। 182 मीटर ऊंची इस मूर्ति को बनाने में हजारों मजदूर व सैकड़ों इंजीनियर 44 महीनों तक जुटे रहे। अमरीका, चीन से लेकर भारत के शिल्पकारों ने इसे तैयार करने में भारी मेहनत की है। यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगी कि आने वाले समय में यह प्रतिमा दुनिया के अजूबे में शामिल हो जाए। यह प्रतिमा सरदार सरोवर नर्मदा बांध हाइवे व हजारों किमी नर्मदा नहर बनाने वाले राठौड़ की देखरेख में स्टेच्यू ऑफ यूनिटी बनकर तैयार हुई है। जबकि अमरीका की स्टेच्यू ऑफ यूनिटी के निर्माण में पांच साल का वक्त लगा। चीन में बुद्ध की 128 मीटर की प्रतिमा करीब 90 साल में बनी थी।
शिल्पकार राम सुतार का कहना है कि प्रतिमा को सिंधु घाटी सभ्यता की कला से बनाया गया है। इसमें चार धातुओं का उपयोग किया गया है जिसमें बरसों तक जंग नहीं लगेगी। स्टैच्यू में 85 फीसदी तांबा का इस्तेमाल किया गया है।
पीएम मोदी का सपना रहा है कि सरदार पटेल के नाम से एक ऐसी प्रतिमा बने जो दुनिया भर की सबसे ऊंची प्रतिमा में शुमार हो। इसलिए पीएम मोदी ने इस प्रतिमा का निर्माण कार्य शुरू कराने से पहले दुनिया भर की ऊंची प्रतिमा को लेकर शोध कराया। शोध के दौरान जब दुनिया में सबसे ऊंची प्रतिमाओं का इतिहास खंगाला तो चीन में बुद्ध की प्रतिमा सबसे ऊंची 128 मीटर की निकली। उसके बाद अमरीका का स्टेच्यू ऑफ लिबर्टी 90 मीटर है। उसके बाद पीएम मोदी ने नर्मदा नदी के तट में 182 मीटर लंबी प्रतिमा को खड़ा करने का निर्णय लिया। इस काम का जिम्मा सौंपा सरदार सरोवर नर्मदा निगम के अध्यक्ष और गुजरात के हाइवे व कैनालमैन एसएस राठौड़ को। पटेल की प्रतिमा को आकार देने का काम शिल्पकार पद्मश्री राम सुतार और उनके पुत्र अनिल सुतार ने किया है।