इसी तरह बिना किसी सहयोगी के अकेले इकाइयां चलाने वाली महिलाओं का प्रतिशत 40 है, जबकि पुरुषों की श्रेणी में यह मात्र 18 प्रतिशत है। अधिकतर लोग बहुत कम मार्जिन पर काम करते हैं।
आंध्र प्रदेश के क्रिया विश्वविद्यालय में लीड और ग्लोबल अलायंस फॉर मास एंटरप्रेन्योरशिप (गेम) के संयुक्त अध्ययन में यह बात सामने आई। लीड एक गैर-लाभकारी शोध संगठन है। सर्वेक्षण उत्तरी क्षेत्र में दिल्ली, हरियाणा, पंजाब, उत्तर प्रदेश, दक्षिण क्षेत्र में तमिलनाडु और पश्चिमी क्षेत्र में गुजरात, महाराष्ट्र और राजस्थान में किया गया।
लैंगिक आधार पर भी हुआ आकलन छठी आर्थिक जनगणना के मुताबिक देश में करीब 80 लाख इकाइयों की मालिक महिला हैं। यह देश में कुल इकाइयों का करीब 13 प्रतिशत है। यह सर्वेक्षण मई में शुरू हुआ और जनवरी तक चलेगा। इसमें लैंगिक आधार पर आंकड़े जुलाई-अगस्त में एकत्रित किए गए। करीब 1,800 सूक्ष्म इकाइयों के बीच सर्वे किया।
प्रणालीगत बाधाएं भी महिलाओं के सामने बुनियादी और प्रणालीगत बाधाएं भी आती हैं। ऐसे में उनके पास जोखिम लेने, गलतियां करने और सबसे अधिक विफल होने का विकल्प नहीं होता। ना तो उनके पास इसकी स्वतंत्रता है और ना ही आजादी।
ये बताए प्रमुख कारण बैंक और अन्य वित्तीय संस्थान लघु महिला उद्यमियों की तत्काल मदद देरी से करते हैं। उन्हें डर है कि महिलाएं कर्ज वापस भी करेंगी या नहीं। हालांकि वित्तीय संस्थानों को महिलाओं के हित में संवेदनशील नीतियां अपनाने की जरूरत है।