जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा, ‘ये क्या जजमेंट लिखा है। मैं इसे दस बजकर दस मिनट पर पढ़ने बैठा और 10.55 तक पढ़ता रहा। हे भगवान! वो हालत बताई नहीं जा सकती, कल्पना से परे है।
न्यायाधीश एमआर शाह ने कहा- फैसला पढ़ते समय कई बार तो मुझे अपने ज्ञान और अपनी समझ पर भी शक होने लगा। मुझे फैसले का आखिरी पैरा पढ़ने के बाद अपने सिर पर टाइगर बाम लगाना पड़ा।
दरअसल दोनों जजों को हिमाचल हाईकोर्ट के फैसले लिखने के तरीके और भाषा दोनों से दिक्कत हुई। फैसला सरल और समझ में आने वाली भाषा ना होकर, काफी जटिल भाषा में लिखा गया है। जजों ने कहा कि- फैसला सरल भाषा में होना चाहिए, उसमें थीसिस नहीं होनी चाहिए।
जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा- फैसला ऐसा सरल लिखा होना चाहिए, जो किसी भी आम आदमी की समझ में आ जाए। इस दौरान उन्होंने न्यायाधीश कृष्ण अय्यर के फैसले का उदाहरण भी दिया। वे जब फैसला लिखते थे, तब भाषा ऐसे होती थी, जैसे कोई किसी से बात कर रहा हो।
यह मामला एक सरकारी कर्मचारी से जुड़ा है। केंद्र सरकार औद्योगिक न्यायाधिकरण (सीजीआईटी) ने कर्मचारी को कदाचार का दोषी मानते हुए दंडित किया था। इस फैसले को कर्मचारी ने हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट में चुनौती दी थी। हाईकोर्ट ने सीजीआईटी के फैसले को सही ठहराया था। जिसके बाद कर्मचारी ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। हाईकोर्ट के फैसले में जो भाषा का इस्तेमाल किया गया, उसे पढ़कर सुप्रीम कोर्ट के दोनों जजों को काफी दिक्कत हुई।