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पूर्व सांसदों को जीवनभर पेंशन दें या नहीं, ये फैसला हम नहीं कर सकते: SC

याचिका में बताया गया है कि 82 प्रतिशत सांसद ‘करोड़पति’ हैं और गरीब करदाताओं पर उनकी पेंशन या उनके परिवार की पेंशन के खर्च का भार नहीं डाला जाना चाहिए।

Mar 07, 2018 / 06:53 pm

Chandra Prakash

pensions of former MPs
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट में बुधवार को पूर्व सांसदों को जीवनभर दी जाने वाली पेंशन को लेकर दायर याचिका पर सुनवाई हुई। याचिका में ऐसे पेंशन को खत्म करने की मांग की गई है। सुनवाई के बाद कोर्ट ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया।
82 फीसदी सांसद करोड़पति, फिर किस बात की पेंशन
एनजीओ लोक प्रहरी की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट इसपर सुनवाई कर रहा था। याचिका में बताया गया है कि 82 प्रतिशत सांसद ‘करोड़पति’ हैं और गरीब करदाताओं पर उनकी पेंशन या उनके परिवार की पेंशन के खर्च का भार नहीं डाला जाना चाहिए।
हम इसपर फैसला नहीं कर सकते- SC
जस्टिस जे. चेलमेश्वर और जस्टिस संजय किशन कौल की पीठ ने कहा, “हम सहमत हैं कि यह एक आदर्श स्थिति नहीं है, लेकिन हम इस पर फैसला नहीं कर सकते।”
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पूर्व सांसदों की गरिमा बनाए रखना चाहिए-अटॉर्नी जनरल
हालांकि, अटॉर्नी जनरल के.के. वेणुगोपाल ने पूर्व सांसदों को पेंशन दिए जाने के पक्ष में कहा कि उनकी गरिमा को बनाए रखना चाहिए। उन्होंने यह कहकर सांसदों को यात्रा भत्ता दिए जाने के प्रावधान का भी पक्ष लिया कि उन्हें अपने निर्वाचन क्षेत्रों की यात्रा भी करनी पड़ती है।
याचिका में क्या है?
याचिका में कहा गया था कि सांसदों को पेंशन मिलना संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन है। यह अनुच्छेद देश के सभी नागरिकों को समानता का अधिकार प्रदान करती है। चूंकि रिटायरमेंट के बाद पेंशन तभी मिलती है जब उसमें कर्मचारी और नियोक्ता का अंशदान रहा हो। सांसद अपने कार्यकाल के दौरान अपने वेतन-भत्तों में से किसी प्रकार अंशदान पेंशन के लिए नहीं देते हैं और न ही सरकार इस प्रकार का कोई योगदान देती है। संसद ने सांसदों की पेंशन के लिए किसी प्रकार के निश्चित कार्यकाल या उम्र का प्रावधान अभी नहीं किया है। अभी तो यह हो रहा है कि कोई व्यक्ति एक दिन सांसद रह लेता है तो वह भी पेंशन का हकदार हो जाता है। इतना ही नहीं यदि वह पहले विधायक भी रहा है तो उसकी पेंशन भी उसे मिलती रहती है। पूर्व सांसद के निधन के बाद उनकी पत्नी/पति अथवा आश्रित को आजीवन पारिवारिक पेंशन दी जाती है। दिलचस्प तथ्य यह है कि आम तौर पर सरकारी कर्मचारी निर्धारित आयुसीमा के बाद पेंशन का हकदार होता है लेकिन यदि कोई 25 वर्ष की आयु में सांसद बन जाता है और बीच में ही सदस्यता छोड़ दे तो भी उसकी आजीवन पेंशन शुरू हो जाएगी।
किसे पेंशन मिले और किसे नहीं, इसके मापदण्ड बनें
ये याचिका सुप्रीम कोर्ट में जब दाखिल की गई थी, तब पत्रिका से बात करते हुए प्रो. त्रिलोचन शास्त्री ने कहा था कि जब-जब दोहरे मापदण्ड नजर आते हैं तो जाहिर है कि आम जनता में रोष उत्पन्न होगा ही। यह कहा जा रहा है कि अभी 80 फीसदी सांसद करोड़पति हैं। सवाल यह उठना स्वाभाविक है कि आखिर करोड़पति सांसद पेंशन के हकदार क्यों? मैं तो यह कहना चाहता हूं कि इन आंकड़ों के आधार पर तो महज बीस फीसदी मौजूदा सांसद ही ऐसे होंगे जिनके बारे में कहा जा सकता है कि उनके सांसद न रहने पर जीवन यापन के लिए पेंशन जरूरी होगी। हमें यह बात समझनी चाहिए कि इस देश की आजादी के तत्काल बाद जो सांसद पहली बार चुने गए उनमें अधिकांश आजादी के आंदोलन की उपज थे। ये सब सेवाभाव से राजनीति में आए थे। तब तो इनकी पेंशन का प्रावधान भी नहीं था। जब सांसदों को पेंशन मिलना शुरू हुआ तब भी शर्त यह थी कि एक कार्यकाल पूरा करने वालों को ही पेंशन दी जाएगी। इसके बाद नियमों में बदलाव किए जाते रहे। आज के हालात काफी बदले हुए हैं। मेरा मानना है कि दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में अब यह वक्त आ गया कि जनप्रतिनिधि जनसेवा को छोड़कर सिर्फ अपने वेतन-भत्ते और सुविधाओं की चिंता करना छोडें। सिर्फ उन्हीं पूर्व सांसदों को पेंशन मिलनी चाहिए जो वास्तव में जरूरतमंद हों। किसे पेंशन मिलनी चाहिए और किसको नहीं, इसे तय करने के लिए संसद एक कमेटी गठित कर सकती है।

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