तत्कालीन हरियाणा सरकार की तरफ से जारी अधिसूचना के बाद गुड़गांव के मानेसर, लखनौला और नौरंगपुर में 2004 और 2007 के बीच निजी बिल्डरों ने 912 एकड़ भूमि का अधिग्रहण किया था। भूमि का अधिग्रहण एक औद्योगिक शहर विकसित करने के लिए किया गया था। अधिग्रहण के अधिसूचित होने के बाद कई किसानों ने घबराकर मार्केट रेट पर निजी बिल्डरों को जमीन बेच दी थी। शुरु में करीब 25 लाख रुपए प्रति एकड़ की दर से जमीन निजी बिल्डरों ने खरीदी। बाद में अधिग्रहण प्रक्रिया के दौरान इस दर को बढ़ाकर 80 लाख रुपए प्रति एकड़ कर दिया गया। अंत में इस जमीन को डीएलएफ होम डेवलपर्स लिमिटेड ने 4.5 करोड़ रुपए प्रति एकड़ रेट पर खरीदी। खरीद प्रक्रिया पूरी होने के बाद हुड्डा सरकार ने अधिसूचना को वापस ले लिया। यही कारण है कि सर्वोच्च अदालत ने इस सौदे को अदालत ने फ्रॉड करार दिया। अदालत का कहना है कि जब तत्कालीन सरकार ने भूमि अधिग्रहण को लेकर अधिसूचना औद्योगिक शहर विकसित करने के लिए तो फिर उसे वापस क्यों लिया। इससे साफ है कि किसानों से जमीन निजी बिल्डरों व बड़ी एजेंट को देने के लिए आपने ऐसा किया गया।
न्यायमूर्ति एके गोयल और उदय ललित की पीठ ने कहा कि यह अधिग्रहण निजी बिल्डर्स और राज्य सरकार की मिलीभगत से हुई थी। राज्य सरकार ने भूमि खरीदने के बाद अधिसूचना को वापस ले लिया। भूमि अधिग्रहण अधिनियम के प्रावधानों का उल्लंघन है। भूमि का अधिग्रहण अवैध तरीके से और निजी पार्टियों को लाभ पहुंचाने के मकसद से किया गया। शीर्ष अदालत ने कहा कि सुनवाई के दौरान हासिल तथ्यों से साफ है कि सरकार ने कुछ लोगों को लाभ पहुंचाने के लिए ऐसा किया। और बाद में अधिसूचना को रद कर दिया गया। तब तक तीनों गांव के किसान घबराकर जमीन बेच चुके थे और जमीन के सौदागर अपना हित साध चुके थे। अदालत विवादित जमीन को हरियाणा शहरी विकास प्राधिकरण और हरियाणा औद्योगिक विकास निगम के हवाले करने को कहा है। साथ ही यह भी कहा कि बिल्डरों और निजी संस्थाएं भूमि मालिकों को दिए गए किसी भी धन की वसूली के हकदार नहीं होंगे।