जस्टिस एमबी लोकुर और दीपक गुप्ता की बेंच ने ये फैसला सुनाया है। कोर्ट ने अपने आदेश में कहा है कि भवन बाईलॉज के अनुरूप नहीं पाई गई 1797 अनाधिकृत कालोनियों में आगे कोई भी निर्माण नहीं होगा। सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने न्याय मित्र (एमीकस क्यूरी) रंजीत कुमार की रिपोर्ट पर यह फैसला लिया। बेंच ने डीडीए की उस अपील को भी खारिज कर दिया, जिसमें उसने दिल्ली के संशोधित मास्टर प्लान (2021) पर लगी रोक हटाने की मांग की थी। कोर्ट ने कहा कि एक तरफ वैध कॉलोनियां हैं जो नियमों का पालन करती हैं, दूसरी तरफ अवैध कॉलोनियां इनका सरेआम उल्लंघन करती हैं।
आपको बता दें कि दिल्ली में 1700 से ज्यादा ऐसी कॉलोनियां है, जहां अवैध निर्माण के जरिए कानून को ठेंगा दिखाया जाता है। इन कॉलोनियों में कानून की परवाह नहीं की जाती। जाहिर है कि इन कॉलोनियों की वजह से शहर की आभा खराब हो रही है। अथॉरिटी चाहे तो यह हलफनामा दे सकती है कि उसे दिल्ली में कानून का राज नहीं चाहिए। अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल मनिंदर सिंह ने कहा कि इन्हें नियमित करने से पहले सभी मानकों को लागू करना सुनिश्चित किया जाएगा।
सुप्रीम कोर्ट द्वारा अवैध कॉलोनियों में निर्माण पर रोक के साथ ही सड़क और फुटपाथ से अतिक्रमण हटाने के आदेश को दिल्ली के आरडब्ल्यूए ने सराहा है। उनके मुताबिक इससे दिल्ली रहने लायक बन सकेगी। हालांकि, वे इसके क्रियान्वयन को लेकर सशंकित हैं। वैसे, सुप्रीम कोर्ट ने स्पेशल टॉस्क फोर्स को सीधे यह आदेश दिया है कि वह दो हफ्ते में अवैध कब्जे हटाएं।
एमीकस क्यूरी ने कहा कि 1,797 कॉलोनियों में से 1,218 को नियमित करने के लिए प्रॉविजनल सर्टिफिकेट जारी किए गए हैं। इस पर बेंच ने कहा कि अथॉरिटी बताए कि सरकारी जमीनों से अवैध निर्माण हटाने को क्या कार्रवाई हुई है? 2007 के आदेश पर अमल क्यों नहीं हुआ? डीडीए का कहना था कि उसने 27.02 एकड़ जमीन कब्जामुक्त कराई है। कोर्ट ने ऐसी जमीनों का ब्योरा मांगा। दो सप्ताह बाद फिर सुनवाई होगी। अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल एएनएस नादकर्णी ने बताया कि दिल्ली के सभी जिलों में नोडल अफसर नियुक्त किए जाएंगे, जो कोर्ट की निगरानी समिति को पुलिस सुरक्षा देंगे।