राजधानी में पिछले चौबीस घंटे में 40 नए लोगों में स्वाइन फ्लू के लक्षण मिले हैं। दिल्ली स्वास्थ्य विभाग का कहना है कि इस साल 1 जनवरी से 4 फरवरी तक स्वाइन फ्लू के दिल्ली निवासी मरीजों की संख्या 895 पहुंच चुकी है। जबकि बाहरी राज्यों के मरीजों की संख्या अलग है। अनुमान है कि इस समय दिल्ली के विभिन्न अस्पतालों में एक हजार से ज्यादा लोग एच1एन1 संक्रमण की चपेट में आने के बाद उपचार ले रहे हैं।
दिल्ली में कोहरे और बदले मौसम के चलते वायु गुणवत्ता काफी खराब स्तर पर पहुंच गई है। विशेषज्ञों की मानें तो पीएम 2.5 के साथ इन्फ्लुएंजा ए वायरस के कुछ समय के लिए संपर्क में आने पर शरीर के अंदर इस वायरस के लंबे समय तक जीवित रहने की संभावना बढ़ जाती है। साथ ही प्रदूषण अधिक होने से पीएम 2.5 के अधिक समय तक संपर्क में रहने पर प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती है। इससे स्वाइन फ्लू या कोई भी मौसमी फ्लू से लोग गंभीर रूप से बीमार हो सकते हैं।
जब संक्रमित व्यक्ति छींकता है या खांसता है तो पानी की छोटी बूंदों के रूप में वायरस हवा में मौजूद पार्टिकुलेट मैटर (पीएम) के साथ मिल जाता है और तापमान कम होने पर यह पीएम कणों के साथ लंबे समय तक एक स्थान पर हवा में जीवित रह सकता है।
पिछले पांच सालों में सबसे ज्यादा मरीज साल 2015 में स्वाइन फ्लू के पाए गए थे। इस दौरान 4300 स्वाइन फ्लू मरीजों की पुष्टि हुई थी। जबिक 2016 में ये आंकड़ा महज 193 था वहीं 2017 में 2835 और 2018 में 205 मरीजों पर स्वाइन फ्लू का अटैक हुआ।