एयरपोर्ट टर्मिनल की तर्ज पर बना यह श्मशान अक्टूबर के अंत तक शुरू होगा, जिसका उद्देश्य लोगों के दुखों को कम करके उन्हें संबल प्रदान करना है। रूपाबेन सीताराम ट्रस्ट के अध्यक्ष सोमभाई पटेल जो इस श्मशान घाट के संचालन का काम देखते हैं, कहते हैं कि ‘श्मशान शब्द काफी कटु लगता है और श्मशानों के मुकाबले किसी भी व्यक्ति को हवाई अड्डे पर जाने में ज्यादा खुशी होती है। ऐसे में मैं उन उन लोगों के दर्द को कम करना चाहता हूं जो अपने प्रियजनों को खो देते हैं। इस प्रयोग के जरिए उन्हें इस बात का विश्वास दिलाना चाहता हूं कि मृतक व्यक्ति की आत्मा एक नई यात्रा पर निकलने जा रही है।’
श्मशान घाट में चालीस फुट के दो विमानों मोक्ष एयरलाइंस और स्वर्ग एयरलाइंस की प्रतिकृतियां खड़ी हुई हैं। ट्रस्ट के अधिकारियों ने पर किसी भी मृतक को अंतिम संस्कार के लिए लाए जाने पर एयरपोर्ट की ही तर्ज पर अनाउंसमेंट कर उन्हें पांच गेटों में से एक के लिए निर्देशित करने की योजना बनाई है। अंतिम संस्कार के दौरान हवाई जहाज के उड़ान भरने जैसी आवाज का प्रबंध होगा। अंतिम संस्कार की प्रक्रिया खत्म होते ही जेट के ऑडियो की अपने आप आवाज बंद हो जाएगी।
ट्रस्ट के चेयरमैन पटेल कहते हैं कि एक बच्चे के रूप में उनके बुजुर्गों ने दिवंगत आत्मा के लिए नहीं रोने की सीख दी। उनका कहना था कि आत्मा नई यात्रा पर जा रही है। ऐसे में उन्हें दुख कम करने और सांत्वना देने के लिए भी इंतजाम किए गए हैं। इस श्मशान घाट पर 80 गांव के लोग अंतिम संस्कार के लिए आते हैं। तीन साल पहले 2015 तक अंतिम संस्कार के लिए जाने वाला 1000 रुपए का चार्ज अब नहीं लिया जाएगा और दिवंगत व्यक्ति को मुफ्त में अंतिम यात्रा कराई जाएगी।