अपने गांव व आसपास के दर्जनों गांवों के जरूरतमंदों के लिए करीमुल हक मसीहा जैसे हैं। वे बीमार को अस्पताल पहुंचाते हैं। किसी को दवा चाहिए तो उसे दवा उपलब्ध कराते हैं। इतना ही नहीं जरूरत पड़ने पर वे पढ़ाई-लिखाई के लिए पुस्तक, कमल और कॉपी की भी व्यवस्था कराते हैं। वे समाज के कई लोगों और संस्थाओं के सहयोग से सेवा कार्य कर रहे हैं।
1995 में एक देर रात करीमुल हक की मां जफीरुन्निसा को दिल का दौरा पड़ा। समय रहते अस्पताल न पहुंचाए जाने के चलते उन्हें बचाया न जा सका। इस घटना ने करीमुल को झकझोर दिया। तब, उन्होंने सोच लिया कि किसी को भी संसाधन के अभाव के चलते वह मरने नहीं देंगे। वह लोगों की स्वास्थ्य सेवा में जुट गए। रिक्शा, ठेला, गाड़ी, बस जो मिला उसी से रोगियों को अस्पताल पहुंचाने का काम करने लगे।
वर्ष 2007 में चाय बागान में काम करने के दौरान करीमुल का एक साथी मजदूर गश खा कर गिर पड़ा। उन्होंने आनन-फानन में बागान प्रबंधक की बाइक ली व उसे अस्पताल पहुंचाया। उसी घटना से बाइक एंबुलेंस का आइडिया आया। एक पुरानी राजदूत मोटर साइकिल खरीदी और शुरू कर दी 24 घंटे निशुल्क बाइक एम्बुलेंस सेवा।
वृद्ध फजलुल हक बताते हैं कि करीमुल न होते तो उनकी जिंदगी न होती। वह बीमार-लाचार हैं ऊपर से चार में उनके तीन बच्चे भी अपंग हैं। करीमुल ने उनके परिवार के लिए टीन का एक घर बनवा दिया। उनके ही गांव के एक और निशक्त हबीबुल हक व राजाडांगा के आफताबुल हक का भी उन्होंने घर बनवाया।
30 मार्च 2017 को तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के हाथों उन्हें पद्मश्री सम्मान से नवाजा गया। दिल्ली दरबार में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उनका अभिवादन करते हुए कहा कि यह पद्मश्री सम्मान करीमुल हक का ‘हक’ है। पद्मश्री बनने के बाद भेंट में लगभग डेढ़ लाख रुपए मिले। उस राशि से भी प्राथमिक उपचार केंद्र व अनाथ आश्रम बनवा रहे हैं।
कुछ माह पहले देश की एक बाइक निर्माता कंपनी ने विशेष रूप से डिजाइन कर अत्याधुनिक बाइक एंबुलेंस उन्हें भेंट की। सिलीगुड़ी के नवयुवक वृंद क्लब ने विधायक कोष से मिली चार-चक्के वाली एंबुलेंस दी। अब उनके बेटे नि:शुल्क बाइक एंबुलेंस सेवा दे रहे हैं।