दरअसल यह वर्ष दुनिया भर में इंटरनेशनल ईयर ऑफ इंडीजीनियस लैंग्वेज यानी स्वदेशी भाषा के अंतरराष्ट्रीय वर्ष के रूप में मनाया जा रहा है। ऐसे में हमारे देश में भाषाओं मौजूदा स्थिति के बारे में जानना दिलचस्प रहेगा।
आंकड़े बताते हैं कि भारत में फिलहाल तकरीबन 450 जीवित भाषाएं हैं। इतनी सारी भाषाएं सुनने में वाकई अच्छा लगता है… इसका सीधा सा अर्थ है कि देश की समृद्ध भाषाई विरासत सहेजने और गर्व करने लायक है।
लेकिन दूसरी तरफ एक बड़ी चिंता की भी बात सामने आई है। देश में जीवित 450 में से 10 भाषाओं के जानकार पूरे देश में 100 से भी कम लोग बचे हैं। यानी देश की यह 10 भाषाएं खत्म होने के कगार पर हैं।
वहीं, अगर बात करें दुनिया की, तो खतरे में पड़ी भाषाओं के यूनेस्को एटलस के ऑनलाइन चैप्टर में बताया गया है कि भारत में 197 भाषाएं या तो असुरक्षित, लुप्तप्राय या विलुप्त हैं। अब बात करते हैं हमारे देश में खतरे में पड़ी भाषाओं की, तो विलुप्त हो रही भाषाओं में अहोम, एंड्रो, रंगकास, सेंगमई, तोलचा व अन्य शामिल हैं। ये सभी भाषाएं हिमालयन बेल्ट में बोली जाती हैं।
दूसरी तरफ, 81 अन्य भारतीय भाषाओं की स्थिति भी बहुत अच्छी नहीं है। इनमें मणिपुरी, बोडो, गढ़वाली, लद्दाखी, मिजो, शेरपा और स्पीति शामिल हैं… लेकिन वे अभी भी ‘कमजोर’ श्रेणी में हैं और इन्हें सहेजने या फिर पुनुर्द्वार के लिए एकजुट प्रयास करने की जरूरत है।
यहां आपको यह जानकारी होना जरूरी है कि दुनिया भर में फिलहाल करीब 7,000 भाषाएं हैं….. और अब जो बात मैं आपको बताने जा रहा हूं वो इन भाषाओं की मौजूदा स्थिति के बारे में आपको चौंका देगी।
यूनेस्को की मानें तो दुनिया की करीब 97 फीसदी आबादी इन 7000 में से केवल 4 फीसदी भाषाओं की ही जानकारी रखती है। जबकि दुनिया के केवल 3 फीसदी लोग बाकी की 96 फीसदी भाषाओं की जानकारी रखते हैं।
इन भाषाओं में ज्यादातर भाषाएं मूल निवासी ही बोलते हैं, लेकिन ये भाषाएं खतरनाक ढंग से विलुप्त होती जा रही हैं। मूल निवासियों द्वारा बोली जाने वाली हजारों भाषाएं विलुप्त होने के कगार पर है। भाषाओं से जुड़े विशेषज्ञों का मानना है कि हमें सदियों पुरानी भाषाओं के विनाश को रोकने की जरूरत है।
अब सोचिए कि आप जिस भाषा में बोल पाते हैैं, उसे अगर कोई समझने वाला ही नहीं होगा, तो आप किसी को अपनी बात कैसे समझाएंगे। यह एक तरह से ऐसी स्थिति हो जाएगी कि आप बोल तो रहे हैं लेकिन बाकी सभी सुन नहीं पा रहे हैं।
इसलिए संभल जाएं और अपनी भाषा को संभालने की जुगत में लग जाएं। कहीं ऐसा न हो कि देर हो जाए।