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महिलाओं के खिलाफ गंदी भाषा का इस्तेमाल माना जा सकता है यौन अपराध, जानिए क्या है मामला?

Published: Dec 22, 2020 06:27:24 pm

Submitted by:

Vivhav Shukla

दिल्ली की एक महिला ने साल 2016 में अपने मैनेजर पर आपत्तिजनक गाली देने का आरोप लगाते हुए पुलिस में शिकायत दर्ज कराई थी। इसी केस की सुनवाई करते हुए अदालत ने ये फैसला सुनाया है

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Using sexist language against women may be IPC offence: Delhi court

नई दिल्ली। महिलाओं की सुरक्षा ने कई कानून बनाए हैं। जिनके जरिए महिलाओं की सुरक्षा का भरोसा मिल पाता है। इस कड़ी में दिल्ली की एक अदालत ने एक शानदार फैसला लिया है। हाल ही अदालत ने एक मामले की सुनवाई करते हुए कहा है कि किसी महिला पर सेक्सिस्ट टिप्पणी करना भारतीय दंड संहिता (IPC) के तहत यौन उत्पीड़न का अपराध माना जा सकता है।

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क्या है मामला?

दरअसल, ये फैसला अदालत ने उस वक्त सुनाया जब यौन उत्पीड़न के एक आरोपी ने एक मजिस्ट्रेटी अदालत के आदेश के खिलाफ याचिका दायर करते हुए कोर्ट के आदेश को रद्द करने की मांग की थी। लेकिन तमाम दलीलों के बाद भी शख्स की याचिका को किनारे रख महिला की शिकायत सुनने को तैयार हो गया।

दिल्ली की एक महिला ने साल 2016 में अपने मैनेजर पर आपत्तिजनक गाली देने का आरोप लगाते हुए पुलिस में शिकायत दर्ज कराई थी। अपनी शिकायत में महिला ने पुलिस को बताया था कि उसका मैनेजर उसे डेस्क पर बैठा कर अश्लील टिप्पणी करता है।

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महिला ने पुलिस से कहा था कि उसने इस बारे में अपने रिपोर्टिंग मैनेजर को बताया था लेकिन उनका कहना था कि काम करना है तो इन सब चीजों की आदत डाल लो। इसके बाद पुलिस ने आरोपी मैनेजर को गिरफ्तार किया ऐर ये मामला मजिस्ट्रियल कोर्ट तक पहुंच गया। कोर्ट ने भी मैनेजर को दोषी ठहरा दिया। जिसके बाद उसने मैनेजर ने सेशन कोर्ट में इस आदेश को चुनौती दी।

महिला को घटना का समय और तारीख तक याद नहीं

अपनी याचिका में आरोपी ने दावा कि उस पर फेक आरोप लगाए गए हैं, महिला को घटना का समय और तारीख तक याद नहीं है। वहीं, आरोपी के वकील ने यह तर्क दिया कि ‘उसके मुवक्किल पर गलत आरोप लगाया गया है। महिला को उसके काम में लापारवाही की वजह से नौकरी छोड़ने के लिए कहा गया था। लेकिन उसने मैनेजर के खिलाफ यह झूठा मुकदमा दायर कर दिया।

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वकील ने ये भी कहा कि महिला ने कंपनी में इसकी शिकायत तक नहीं की। अगर ऐसा कुछ हुआ होता तो उसे कंपनी में बताना चाहिए था। इसके साथ ही महिला ने कोर्ट के सामने दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा 164 के तहत बयान दर्ज नहीं कराया।

बयान शिकायत को खारिज करने का आधार नहीं

वहीं इन सारी दलीलों को सुनने के बाद सेशन जज धर्मेंद्र राणा ने कहा कि महिला ने मैनेजर के खिलाफ खास आरोप लगाया है। इसलिए इसे बिना जांचे-परखे केवल इसलिए खारिज नहीं किया जा सकता है कि उसे घटना का समय और तारीख याद नहीं है। जज महोदय ने शिवराज सिंह अहलावत बनाम यूपी राज्य मामले का उदाहरण देते हुए कहा कि ऐसे मामलों में महिला का कोर्ट में बयान दर्ज नहीं कराया जाना उसकी शिकायत को खारिज करने का आधार नहीं बन सकता है।

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आरोप लगने के समय तुरंत सबूतों की जरूरत नहीं

कोर्ट ने आगे कहा कि आरोपी पर लगे आरोपों की जांच होगी और अगर जांच में वे दोषी पाया जाता है तो उसे सजा होगी। कोर्ट ने ये भी कहा कि आरोप लगने के समय तुरंत सबूतों की जरूरत नहीं होती है। जांच के बाद अगर शिकायत कर्ता गलत पाया जाता है तो उसे भी सजा होगी।

 

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