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हांगकांग में छह से आठ वर्ष के बच्चों पर हुए एक शोध में पता चला है कि महामारी के दौर में उनकी दूर की नजरें कमजोर हुई हैं। इसे मायोपिया कहते हैं। मायोपिया में बच्चे या व्यक्ति को दूर की चीजे धुंधली दिखाई देती हैं।
ब्रिटिश जर्नल ऑफ ऑप्थैलमोलॉजी में प्रकाशित एक शोध में ये परिणाम सामने आया है। महामारी के दौरान वैज्ञानिकों ने 1793 बच्चों की नजर और स्वभाव को मॉनिटर किया। वैज्ञानिकों ने पाया कि समय के साथ शोध में शामिल 19 फीसदी बच्चों में नजर संबंधी तकलीफ सामने आई है।
स्क्रीन टाइम बढ़ने से आंखों पर पड़ा असर
वैज्ञानिकों के अनुसार महामारी के कारण घरों में कैद बच्चों को बाहर खेलने का अवसर नहीं मिला। ऐसी स्थिति में लैपटॉप, मोबाइल,आईपैड और दूसरे गैजेट्स ही उनके लिए सबकुछ हो गए। स्क्रीन टाइम बढ़ने से उनकी आंखों पर गहरा असर पड़ा है। पोषक आहार की जगह अधिकतर बच्चे फास्टफूड खाना पसंद करते हैं। ऐसे में उनके अंदर प्रोटीन और खनिजों की मात्रा कम हो जाती है।
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स्मार्टफोन का इस्तेमाल ज्यादा बढ़ा
किंग्स कॉलेज लंदन के वैज्ञानिक के अनुसार कोरोना महामारी के दौर में स्मार्टफोन का इस्तेमाल ज्यादा बढ़ा है। इस कारण आने वाले समय में बच्चों की दूर नजरें कमजोर हुई हैं। ऑस्ट्रेलिया के न्यू साउथ वेल्स के वैज्ञानिकों ने पहले ही अनुमान लगाया था कि अगले तीन दशक में दूरदृष्टि संबंधी परेशानी से जूझने वाले रोगी सात गुना अधिक हो जाएंगे। वर्ष 2050 तक 480 करोड़ लोग मायोपिया की तकलीफ से पीडि़त होंगे।