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बीजिंग एससीओ मीट: भारत को नहीं चीन पर भरोसा, BRI को समर्थन देने से किया इनकार

चीन की सामरिक महत्‍वाकांक्षा और इतिहास को देखते हुए भारत ने बीआरआई के मुद्दे पर चीन का साथ देने से इनकार किया।

नई दिल्लीApr 25, 2018 / 11:05 am

Dhirendra

sushma swaraj
नई दिल्‍ली। भारत ने चीन की पुरानी नीतियों से सबक लेते हुए उसके महत्वकांक्षी बेल्ट ऐंड रोड इन्फ्रास्ट्रक्चर प्रॉजेक्ट (BRI) को समर्थन देने से इनकार कर दिया है। हालांकि एससीओ के विदेश मंत्रियों की बैठक में चीन ने भारत को मनाने की पुरजोर कोशिश की। लेकिन इस मामले में उसके सभी प्रयास नाकाम रहे। बैठक के बाद जारी एक बयान में कहा गया कि कजाखस्तान, किर्गिस्तान, पाकिस्तान, रूस, ताजिकिस्तान और उज्बेकिस्तान ने चीन के बेल्ट एंड रोड प्रस्ताव के प्रति अपना समर्थन दोहराया है। इस बयान में भारत के इनकार को लेकर ज्यादा जानकारी नहीं दी गई। आपको बता दें कि भारत और पाकिस्तान पिछले साल ही एससीओ में शामिल हुए हैं।
चीन परेशानी बढ़ी
कयास यह लगाया जा रहा था कि पीएम मोदी की 27 और 28 अप्रैल को चीन की अनौपचारिक यात्रा को देखते हुए भारत बीआरआई को लेकर नरम रुख का परिचय देगा। लेकिन ऐसा नहीं हुआ और 1962 में चीन ने भारत पर युद्ध थोपकर कड़ी शिकस्‍त दी थी। चीन के उसी सबक से सीख लेते हुए भारत ने इस महत्‍वाकांक्षी परियोजना का हिस्‍सा बनने से तत्‍काल इनकार कर दिया है। इस मामले में विशेषज्ञों का मानना है कि चीन को लग रहा था कि वह भारत को इस प्रॉजेक्ट के लिए राजी कर लेगा, लेकिन ऐसा न होने से उसकी परेशानी बढ़ गई है। इस बैठक में सुषमा स्वराज ने साफ कर दिया कि भारत इस प्रोजेक्ट का हिस्सा नहीं बनेगा। भारत का यह रुख इसलिए भी अहम है, क्योंकि पीएम मोदी इसी सप्ताह चीन के दौरे पर जाने वाले हैं।
अब मोदी-जिनपिंग मुलाकात में उठ सकता है मुद्दा
बीआरआई के जरिए चीन अपने पुराने सिल्क रोड नेटवर्क को फिर से खड़ा करना चाहता है। प्रोजेक्ट के एक महत्वपूर्ण हिस्से के लिए भारत की सहमति जरूरी है। लेकिन भारत ने इस पर हस्ताक्षर नहीं किए हैं। इस प्रोजेक्ट के तहत चीन और पाकिस्तान के बीच 57 अरब डॉलर की लागत से आर्थिक गलियारा बनाया जा रहा है। चीन से पाकिस्तान के ग्वादर बंदरगाह तक जाने वाला यह गलियारा पाक के अवैध कब्जे वाले कश्मीर से होकर गुजरता है। यह हिस्सा भारत का है। चीन के प्रोजेक्‍ट को भारत ने संप्रभुता का उल्‍लंघन माना है। कयास यह लगाया जा रहा है कि अब यह मुद्दा पीएम मोदी और राष्ट्रपति जिनपिंग की बीच इस सप्ताह होने वाली अनौपचारिक बैठक में उठ सकता है। दूसरी तरफ चीनी विदेश मंत्रालय की वेबसाइट पर जारी बयान में उपविदेश मंत्री कोंग शियानयू ने कहा कि अनौपचारिक वार्ता का मतलब है, दोनों नेता मित्रतापूर्ण माहौल में सहयोग बढ़ाने के लिए विचारों का आदान-प्रदान कर सकते हैं। यह न सिर्फ दोनों देशों और लोगों बल्कि इस क्षेत्र एवं विश्व के शांतिपूर्ण विकास के लिए भी अहम है।
1940 से चला आ रहा विवाद
आपको बता दें कि 2017 में दोनों देशों के रिश्ते काफी तनावपूर्ण रहे। डोकलाम में भारत और चीन की सेनाएं 73 दिन तक आमने सामने थीं। एक मौका ऐसा भी था जब दोनों देशों के सैनिकों ने एक दूसरे पर पत्थरबाजी की और धक्का मुक्की भी हुई। इन विवादों के बाद दोनों के देशों के सर्वोच्च नेताओं के बीच अब पहली बार द्विपक्षीय बातचीत होने जा रही है। भारत दक्षिण एशिया में चीन के बढ़ते सैन्य और आर्थिक प्रभाव से चिंतित है। दोनों देशों के बीच 1940 के दशक से सीमा विवाद चला आ रहा है। 1962 में सीमा विवाद के चलते एक युद्ध भी हो चुका है।

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