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ISRAEL CRISIS : क्या बेंजामिन नेतन्याहू का युग खत्म हो गया

-भ्रष्टाचार के मामले में सुनवाई के दौरान अदालत ने कहा, नेतन्याहू ने सत्ता का दुुरुपयोग किया-दो वर्ष में चौथी बार चुनाव में किसी को बहुमत नहीं-विपरीत विचारधारा की पार्टी का समर्थन लेने पर कशमकश

Apr 05, 2021 / 06:14 pm

pushpesh

ISRAEL CRISIS : क्या बेंजामिन नेतन्याहू का युग खत्म हो गया

बेंजामिन नेतन्याहू

हाल ही चुनाव में बहुमत से चूके इजराइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू के लिए सोमवार को दो मुश्किल पैदा करने वाली घटनाएं हुईं। पहला यरूसलम की एक जिला अदालत ने भ्रष्टाचार के मामले में सुनवाई के दौरान कहा कि नेतन्याहू ने अपने फायदे के लिए सत्ता का दुरुपयोग किया है। हालांकि नेतन्याहू ने इस बात से खंडन किया है। दूसरा राष्ट्रपति रेवेन रिवलिन ने नई गठबंधन सरकार की संभावनाओं को लेकर चुने हुए प्रतिनिधियों से चर्चा की। इस मुलाकात को नेतन्याहू के राजनीतिक युग के अवसान के रूप में भी देखा जा रहा है। दो वर्ष में चौथी बार हुए चुनाव में भी नेतन्याहू बहुमत नहीं जुटा सके। साथ ही आरोपों का सामना करने से भी इनकार कर दिया।
वर्ष 1977 में चुनाव के बीच तत्कालीन पीएम यित्जाक राबिन को उम्मीदवारी वापस लेनी पड़ी, क्योंकि उनका विदेश में बैंक खाता उजागर हो गया था। वर्ष 2008 में भी प्रधानमंत्री एहुद ओलमर्ट ने भ्रष्टाचार के आरोपों के बाद इस्तीफा दे दिया था। इसके विपरीत भ्रष्टाचार के तीन मामले सामने आने के बावजूद नेतन्याहू ने इन्हें मानने से इनकार कर पुलिस, अभियोजन और पे्रस पर ही सवाल खड़े कर दिए।
सत्ता के लिए विचारधारा से समझौता
नेतन्याहू ने एक साल पहले सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी ब्लू एंड व्हाइट को तोडकऱ आधे सदस्यों को सरकार का हिस्सा बना लिया। लेकिन उन्हीं की लिकुड पार्टी में विरोध के बाद सरकार गिर गई। पिछले वर्ष लिकुड पार्टी से अलग हुए गुट ने न्यू होप नाम से नई पार्टी बना ली, जिसने ताजा चुनाव में छह सीटें जीती हैं। नेतन्याहू की लिकुड और सहयोगी पार्टियों ने 59 सीटें जीती हैं, जबकि विपक्षी दलों ने 57 सीटों पर कब्जा किया है। लेकिन सरकार बनाने का फॉर्मूला नेतन्याहू के विरोधी और अरब विचारधारा के समर्थक मंसूर अब्बास के पास है, जो 4 सीटें जीतकर किंगमेकर की भूमिका में है। नेतन्याहू की मजबूरी यह है कि जिस अरब विरोधी दृष्टिकोण को लेकर उन्होंने अपनी राजनीतिक पारी की शुरुआत की, उसी सोच के मंसूर अब्बास से हाथ मिलाना पड़ सकता है। चुनाव में उन्हें इस बात का अंदाजा था। इसीलिए उन्होंने चुनाव प्रचार के दौरान खुद को अरबी नाम अबु यैर से जोड़ा। हालांकि निर्वाचित प्रतिनिधियों से मिलने के बाद संभव है कोई नया चेहरा सामने आए।

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