इस करार के दौरान इजराइल के पीएम बेंजामिन नेतन्याहू, यूएई के विदेश मंत्री अब्दुल्ला बिन जायद अल नहयान और बहरीन के विदेश मंत्री अब्दुल्ला लतीफ बिन राशिद अल जयानी मौजूद थे। उन्होंने समझौते पर हस्ताक्षर किया। इन समझौते से अमरीका को अरब देशों की कड़ी में इन दो मुस्लिम देशों को साथ लाने में सफलता मिली है।
इन समझौतों के बाद यूएई और बहरीन अरब राष्ट्रों के तीसरे और चौथे देश हो गए हैं। इनसे पहले 1979 में मिस्र और 1994 में जॉर्डन से शांति समझौतों पर दस्तखत हो चुके हैं। मीडिया से बातचीत में ट्रंप ने कहा कि उम्मीद है कि कई और अरब देश भी रिश्तों को सामन्य बनाने की कोशिश करेंगे। वे भी आगे बढ़कर इजराइल से समझौते करेंगे। फलस्तीन भी इस कड़ी में शामिल हो सकता है। ऐसा कहा जा रहा है कि इन समझौतों से ट्रंप ईरान पर दबाव बना पाएंगे। चुनावी माहौल में ये उनके लिए फायदेमंद साबित होगा। प्रचार में इजराइल के पीएम बेंजामिन नेतन्याहू सरकार के लिए वह कुछ भी अच्छा करेंगे तो अमरीका में ईसाई वोटरों को रिझा सकेंगे। इस तरह से समझौतों को ट्रंप सरकार विदेश नीति की सफलता के तौर पेश करेंगे।
ईरान के एयरबेस तक है यूएई की पहुंच रणनीतिक दृष्ठी से देखें तो इससे इजराइल को फायदा होगा। इजरायल के एयरबेस ईरान से काफी दूर स्थित हैं। मगर वहीं यूएई तो खाड़ी के निकट है। यूएई तो खाड़ी के उस पार ही है। ऐसे में अगर ईरान के परमाणु स्थलों पर हवाई हमले कोशिशी हुई तो इजराइल, अमरीका, बहरीन, यूएई के पास अब कई नए विकल्प होंगे।
ट्रंप के दामाद ने अहम भूमिका निभाई यह समझौता के पीछे में राष्ट्रपति के सलाहकार और दामाद जैरेड कुशनर का हाथ है। यूएई और बहरीन के नेताओं से फोन पर बात करने के बाद ट्रंप ने खुद दोनों समझौतों का ऐलान कर डाला। वाइट हाउस समारोह में यूएई के वली अहद (उत्तराधिकारी) के भाई एवं देश के विदेश मंत्री हिस्सा लेंगे।