हाफिज की गिरफ्तारी ने छेड़ी बहस
आतंकी संगठन जमात-उद दावा के सरगना और मुंबई हमले के मास्टरमाइंड हाफिज सईद को बुधवार को पाकिस्तान काउंटर टेररिज्म डिपार्टमेंट ( CTD ) ने गिरफ्तार कर लिया। हाफिज की गिरफ्तारी को इमरान खान सरकार के लिए एक बड़ी कामयाबी माना जा रहा है। पाकिस्तान की मीडिया अब पीएम इमरान सरकार की खूब तारीफ कर रही है।
आतंक का दूसरा नाम है हाफिज सईद, जानिए उसके काले कारनामों का चिट्ठा
अपने इस कदम के जरिये पाकिस्तान दुनिया को यह संदेश देने की कोशिश कर रहा है कि पाकिस्तान असल में आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई लड़ रहा है। इस बात के भी दावे सामने आने लगे हैं कि इमरान खान ने आतंकवाद को लेकर जीरो टॉलेरेंस की नीति अपनाई है। लिहाजा हाफिज सईद की गिरफ्तारी आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में बढ़ाया गया एक कदम है। लेकिन जानकारों की मानें तो पाकिस्तान का आतंकी नेटवर्क इतना मजबूत है कि केवल एक आतंकी की गिरफ़्तारी से कोई फर्क नहीं पड़ेगा।गंभीर नहीं है पाकिस्तान
इस बात पर भी सवाल उठना लाजिमी है कि पकिस्तान इस तरह की कार्रवाइयों लेकर कितना गंभीर है। अभी तो पाकिस्तान के ऊपर एफएटीएफ की धमकी का असर साफ दिखा रहा है। एफएटीएफ एक वैश्विक संगठन है जो आतंक के वित्तपोषण के खिलाफ काम करता है तथा ऐसे देशों और संगठनों पर बैन लगाता है जो किसी भी तरह आतंक या आतंकी नेटवर्क की आर्थिक मदद करने में लगे हैं।
एफएटीएफ की कार्रवाई का डर
बीते दिनों एफएटीएफ ने अपने प्रस्ताव में कहा था कि अगर पाकिस्तान अगले दो महीने में कोई ठोस कार्रवाई नहीं करता तो उसने बैन किया जा सकता है। फिलहाल पाकिस्तान इस संगठन की ग्रे-लिस्ट यानी निगरानी सूची में पहले से दर्ज है। अगर आतंकियों की मदद करने वाली पकिस्तान की छवि नहीं टूटती है तो एफएटीएफ कोई भी कड़ी कार्रवाई कर सकता है। इससे पहले से बदहाल पाकिस्तान और भी कंगाल हो जाएगा और उसे दुनिया के किसी भी संगठन से आर्थिक मदद मिलनी मुश्किल हो जाएगी।
भारत द्वारा बालाकोट में की गई एयर स्ट्राइक के बाद आतंकियों ने दहशत के मारे पाकिस्तान छोड़ दिया है। भारत की एयर स्ट्राइक के बाद पाकिस्तान स्थित आतंकवादी समूहों ने अफगान आतंकवादी समूहों के साथ हाथ मिला लिया है और अफगानिस्तान में अपना बेस कैम्प स्थापित किया है। इस बात का दावा किया जा रहा है कि जैश-ए-मोहम्मद और लश्कर-ए-तैयबा के अड्डे अफगानिस्तान में चले गए हैं। इसको देखते हुए भारत ने काबुल में अपना वाणिज्य दूतावास को हाई अलर्ट पर रखा है।
निश्चित ही यह रिपोर्ट कोई सुखद नहीं है। अफगानिस्तान स्थित तालिबान का आतंकी नेटवर्क भी जैश और लश्कर के करीब माना जाता रहा है। अफगानिस्तान से इन आतंकियों के लिए मध्य एशिया के रास्ते यूरोपीय देशों में दाखिल होना कोई बड़ी बात नहीं है। दूसरा यह कि ये ही आतंकी पाक-अफगान सीमा के कबायली इलाकों से होते हुए गिलगित बाल्टिस्तान के रास्ते भारत में दाखिल हो सकते हैं।
कुल मिलाकर स्थिति यह है कि इन आतंकियों के लिए अफगानिस्तान में स्थापित हो जाना बेहद फायदेमंद है। भररत सहित दुनिया के कईइलाके अब सीधे-सीधे इन आतंकियों के निशाने पर आ गए हैं। अगर समय रहते इस नेटवर्क को ध्वस्त नहीं किया गया तो आने वाले सालों में यह भारत ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया के लिए सबसे बड़ी चुनौती साबित हो सकता है।
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