पिछले मालिक ने कहा कि उन्होंने 1930 के दशक के दौरान रात में इसे गिरते देखा था। उन्होंने कहा कि जब मैं इसके पास गया तो यह अभी भी गर्म था। मध्य मिशिगन विश्वविद्यालय में पृथ्वी और वायुमंडलीय विज्ञान में भूगोल संकाय जी सदस्य मोना सिर्बेस्कू ने एक्स-रे फ्लोरोसेंस के तहत इसकी जांच की। उन्होंने दावा किया कि देखते ही ऐस अलग गया था कि यह चट्टान कुछ खास थी।जांच के दौरान उन्होंने पाया कि यह लोहा और निकल से बना उल्कापिंड था जिसमें लगभग 88 प्रतिशत लौह और 12 प्रतिशत निकल था।यह एक दुर्लभ कॉम्बिनेशन है। लौह उल्कापिंडों में आमतौर पर लगभग 90-95 प्रतिशत होता है।
उल्कापिंड की जांच करने वाले वाले डॉ सिर्बेस्कु ने कहा, ‘यह मेरे जीवन के सबसे दुर्लभ अनुभवों में से एक है।यह प्रारंभिक सौर मंडल का एक टुकड़ा है जो सचमुच हमारे हाथों में गिर गया है। मैं यह सोचकर बेहद रोमांचित हूँ। वर्तमान मालिक ने इसे 30 साल तक रखा इसे अपने डोरस्टॉप के रूप में इस्तेमाल किया। बाद में इसे अपने बच्चों को दिखाने और बताने के लिए स्कूल भेज दिया। जिस स्थान पर यह गिर गया, उसके नाम पर उसे एडमोर उल्कापिंड नाम दिया गया है। कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय, लॉस एंजिल्स में पृथ्वी, ग्रह और अंतरिक्ष विज्ञान विभाग के प्रोफेसर एमेरिटस जॉन वासन को एक नमूना भेजा गया है। वह इस पिंड की रासायनिक संरचना को निर्धारित करने के लिए न्यूट्रॉन सक्रियण विश्लेषण कर रहे है। इस विश्लेषण से सौर मंडल के कई राज खुलने की उम्मीद है। विश्लेषण में इस पिंड के कई दुर्लभ तत्वों का पता लग सकता है जो इसके मूल्य को बढ़ा सकते हैं।
एक उल्का वह है जो वायुमंडल में चलते समय प्रकाश की चमक छोड़ती है।अधिकांश उल्कापिंड इतने छोटे होते हैं कि वे वायुमंडल में वाष्पीकृत हो जाते हैं।उल्काऔर उल्कापिंड आमतौर पर क्षुद्रग्रहों और धूमकेतु से निकलते हैं। यदि कोई धूमकेतु पृथ्वी की पूंछ से गुजरता है, तो वायुमंडल में इसके अधिकांश मलबे जलने लगते हैं इसे जो उल्का शॉवर कहा जाता है।