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Myanmar coup : म्यांमार में तख्तापलट दक्षिण-पूर्व एशिया में लोकतंत्र के लिए सबक

-थाइलैंड, इंडोनेशिया, फिलीपींस, कंबोडिया के बाद म्यांमार में संसदीय प्रणाली आहत हुई है।-जापानी कंपनियों ने हाल के वर्षों में म्यांमार में भारी निवेश किया है।

Feb 09, 2021 / 12:02 am

pushpesh

अपनी नेता आंग सान सू की के समर्थन में प्रदर्शन करते लोग।

दुनिया में लोकतांत्रिक देशों के लिए पिछला वर्ष काफी मुश्किलों भरा रहा है। हाल सैन्य शासन की वापसी म्यांमार के लिए बड़ा राजनीतिक संकट है, लेकिन दक्षिण-पूर्व एशिया के लिए लोकतांत्रिक विफलता का प्रतीक माना जाएगा। जिस दक्षिण-पूर्व एशिया ने कभी लोकतांत्रिक उत्थान में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की थी, पिछले एक वर्ष में बुरी तरह फिसला।
थाइलैंड, इंडोनेशिया, फिलीपींस, कंबोडिया के बाद म्यांमार में संसदीय प्रणाली आहत हुई है। ये गिरावट न केवल दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों की घरेलू राजनीति को प्रभावित करती है, बल्कि अन्य देशों पर भी इसका असर साफ नजर आ रहा है। जैसे, फिलीपींस दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों के संगठन ‘आसियान’ का सदस्य था, जो अन्य देशों में लोकतंत्र बहाली के लिए मजबूती से खड़ा होता था। लेकिन राष्ट्रपति रोड्रिगो दुतेर्ते के नेतृत्व में वहां लोकतांत्रिक मूल्यों का पतन हो रहा है, इसलिए म्यामांर में तख्तापलट पर फिलीपींस चुप है। कई अन्य क्षेत्रीय सरकारों की तरह फिलीपींस ने तख्तापलट को म्यांमार का आंतरिक मसला कहकर पल्ला झाड़ लिया।
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आसियान देशों ने भी चुप्पी साधी
कभी म्यांमार की राजनीति और सुधार की वकालत करने वाला थाइलैंड भी अब सत्ता परिवर्तन के मुद्दे पर चुप है। इस बीच इंडोनेशिया और मलेशिया भी घरेलू राजनीति और कोरोना के कारण शांत हैं। इन देशों ने खुद भी लोकतांत्रिक गिरावट का दौर देखा है। अतीत में इंडोनेशिया ने खुद ही म्यांमार की सेना को सत्ता पर काबिज होने में केंद्रीय भूमिका निभाई थी। उधर दक्षिण पूर्व एशिया के शक्तिशाली देश जापान ने भी इस तख्तापलट पर ज्यादा कुछ नहीं कहा। इसकी वजह भी है, जापानी कंपनियों ने हाल के वर्षों में म्यांमार में भारी निवेश किया है। म्यांमार में चीन के रणनीतिक प्रभाव के कारण जापान भले ही कठोर प्रतिस्पर्धा का केंद्र मानता है, लेकिन म्यांमार की सेना के प्रभाव को कम करने में सक्षम भी है।
ग्लोबल डेमोक्रेसी इंडेक्स में गिरावट
विश्लेषकों का कहना है कि दुनियाभर में लोकतंत्र कमजोर हो रहा है। हाल ही लंदन स्थित इकोनॉमिस्ट इंटेलीजेंस यूनिट ने 167 देशों में लोकतांत्रिक व्यवस्था का आकलन किया है। इसके मुताबिक पिछले वर्ष दुनिया के 8.4 फीसदी देशों में ही पूर्ण लोकतंत्र पाया गया, जबकि एक तिहाई साम्यवादी शासन के अधीन रहे। इसके चलते पिछले वर्ष ग्लोबल डेमोक्रेसी इंडेक्स में 10 में से 5.37 फीसदी की गिरावट आई है, जो 2006 में रेटिंग शुरू होने के बाद सबसे निम्न स्तर पर है।

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