सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस कुरियन जोसेफ ने कोच्चि में मीडिया से बातचीत में बताया कि संकट के समाधान के लिए किसी बाहरी दखल की जरूरत नहीं है। चार न्यायाधीशों ने सिर्फ प्रक्रिया से जुड़े सवाल उठाए हैं। इसका समाधान आपस में बातचीत से हो जाएगा। मामले को संस्थान के भीतर ही उठाया गया है इसलिए इसके समाधान के लिए जरूरी कदम संस्थान खुद उठाएगा। हमने यह मामला भारत के राष्ट्रपति के सामने नहीं उठाया है, क्योंकि सुप्रीम कोर्ट या इसके जजों की कोई संवैधानिक जिम्मेदारी उनके पास नहीं है।
जस्टिस गोगोई बोले, संकट की कोई बात नहीं
जस्टिस रंजन गोगोई ने भी कोलकाता में पत्रकारों से बातचीत में साफ कर दिया है कि सुप्रीम कोर्ट में कोई संवैधानिक संकट नहीं है। यह पूछे जाने पर कि क्या सुप्रीम कोर्ट के चारों जजों ने प्रेस कान्फ्रेंस कर नियमों का उल्लंघन किया है। इस पर उन्होंने कुछ भी टिप्पणी करने से साफ इन्कार कर दिया। उन्होंने कहा कि मुझे अभी लखनऊ के लिए फ्लाइट पकड़नी है। इसलिए मैं कोई बात नहीं कर सकता।
अटर्नी जनरल केके वेणुगोपाल को उम्मीद है कि सुप्रीम कोर्ट के चार जजों की प्रेस कान्फ्रेंस के बाद गहराया संकट जल्द खत्म हो जाएगा। इससे पहले उन्होंने शुक्रवार को कहा था कि जजों को सीजेआइ के खिलाफ सार्वजनिक रूप से शिकायत करने से बचना चाहिए। शनिवार को भी उन्होंने इसी बात पर जोर दिया था। उनका कहना है कि जज प्रतिष्ठित लोग होते हैं। उन्हें सौहार्दपूर्ण तरीके से अपने मतभेदों को दूर करना चाहिए।
उधर, सुप्रीम कोर्ट बार संघ ने एक प्रस्ताव पारित कर अपील की है कि चार वरिष्ठ न्यायाधीशों के मतभेद पर शीर्ष अदालत की पूर्ण पीठ विचार करे। एससीबीए अध्यक्ष विकास सिंह ने कहा कि सभी जनहित याचिकाओं पर सीजेआई या कॉलेजियम में वरिष्ठ न्यायाधीशों को विचार करना चाहिए। 15 जनवरी के लिए जो जनहित याचिकाएं सुनवाई के लिये सूचीबद्ध हैं उन्हें भी सीजेआई या कॉलेजियम के सदस्यों की अध्यक्षता वाली पीठों को सौंपा जाना चाहिए। एक आपात बैठक में चार न्यायाधीशों और सीजेआई के बीच कथित मतभेदों पर चिंता जताते हुए उन्होंने कहा कि अगर जरूरत पड़ी तो हम इन घटनाक्रमों पर बातचीत के लिए सीजेआई और अन्य न्यायाधीशों से मुलाकात भी करेंगे।