आपको बता दें कि अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने मंगलवार सुबह सिंगापुर में उत्तर कोरियाई तानाशाह किम जोंग उन से मुलाकात की। दोनों की मुलाकात कराने में सिंगापुर के विदेश मंत्री विवियन बालकृष्णन और कानून एवं गृह मामले के मंत्री षणमुंगम ने बड़ी भूमिका निभाई। बालकृष्णन इस सम्मेलन से जुड़ी व्यवस्थाओं का इंतजाम कर रहे हैं। उन्होंने रविवार को किम को सिंगापुर की सैर कराई। बालाकृष्णन ने पिछले कुछ दिनों में उत्तर कोरियाई नेता किम और अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के साथ काफी समय बिताया और मुलाकात की राह को आसान किया। उन्होंने रविवार को चांगी एयरपोर्ट पर राष्ट्रपति ट्रंप और चेयरमैन किम का स्वागत किया और बाद में दोनों से अलग-अलग मुलाकरत कर शिखर सम्मलेन की तैयारी की जानकारी दी। वहीं षणमुंगम पर समिट के दौरान सुरक्षा की जिम्मेदारी है। 59 साल के षणमुंगम वह पेशे से वकील है।
भारत और उत्तर कोरिया के बीच बेहतर राजनयिक संबंध रहा है। पिछले दो दशकों दौरान दोनों देशों के बीच रिश्ते कमजोर हुए हैं। लेकिन ट्रंप और किम के मुलाकात और उत्तर कोरिया द्वारा परमाणु नीति का परित्याग करने के संकेत लगता है कि दोनों देशों के बीच पुराने संबंध फिर से परवान चढ़ सकते हैं। ऐसा इसएिल कि यूएन का प्रतिबंध हटने पर भारत नए सिरे से उत्तर कोरिया के साथ कारोबारी लेन देन को पहले की तरह बहाल कर सकता है। वर्तमान में भारत चाहते हुए प्रतिबंधों की वजह से वैसा नहीं कर पा रहा है जैसा कारोबारी, राजनयिक और अन्य क्षेत्रों में संबंध रखना चाहता है।
उत्तर कोरिया के साथ कमजोर पड़े रिश्ते का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि भारत ने अपने एक मंत्री को दो दशक बाद उत्तर कोरिया भेजा है। पीएम मोदी एक्ट ईस्ट पॉलिसी के तहत उत्तर कोरिया से संबंधों को सुधारने पर बल दिया है। यही कारण है कि 2014 में मोदी सरकार बनने के बाद 2015 में तत्कालीन सूचना और प्रसारण मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी प्योंगयांग गए थे। अप्रैल, 2015 में उत्तर कोरिया के विदेश मंत्री भारत आए और अपने भारतीय समकक्ष से मिलकर मानवीय सहायता की मांग की थी। वहीं 2016 में एक भारतीय मंत्री उत्तर कोरिया के स्वतंत्रता दिवस के मौके पर उत्तर कोरिया के दूतावास गए थे। शायद ये पहला मौका था जब उत्तर कोरिया के किसी आधिकारिक समारोह में भारत सरकार का कोई मंत्री शामिल हुआ था। उस वक्त भारतीय मंत्री किरन रिजीजू ने कहा था कि व्यापार और वाणिज्य पर आधारित दोनों देशों के संबंधों लंबे चलेगें। और 2017 में भारत सरकार ने अपने विदेश राज्य मंत्री और पूर्व सेना प्रमुख वीके सिंह को उत्तर कोरिया भेजा। इस दौरे को काफी अहम माना जा रहा है। वीके सिंह अपने इस दौरे के दौरान उत्तर कोरिया कई मंत्रियों और अधिकारियों से मुलाकात की। दो दिन चली वार्ताओं में दोनों देशों के बीच राजनीतिक, क्षेत्रीय, आर्थिक, शैक्षणिक और सांस्कृतिक सहयोग बढ़ाने को लेकर चर्चा हुई। दूसरी तरफ इस बात की चर्चा है कि ऐसे समय में भारत का उत्तर कोरिया के पास जाने का क्या कारण है? संभवत: भारत इस बात की तसल्ली कर लेना चाहता है कि अचानक हुए राजनयिक बदलावों के दौर में वो कहीं पीछे ना छूट जाए?
आपको बता दें कि उत्तर कोरिया और भारत के बीच 45 सालों तक अच्छे-खासे राजनयिक संबंध रहे हैं। दिल्ली और प्योंगयांग में दोनों के छोटे दूतावास भी है। दोनों देशों के बीच सांस्कृतिक आदान-प्रदान से जुड़े प्रोग्राम हुआ करते थे और दोनों ने विज्ञान और तकनीक के क्षेत्र में सहयोग को लेकर समझौतों पर हस्ताक्षर भी किए थे। भारत में विदेशी राजनयिकों के लिए जो कोर्सेस चलाए गए उनमें भी उत्तर कोरिया के राजनयिकों ने भाग लिया था। संयुक्त राष्ट्र के एक कार्यक्रम के तहत भारत उत्तर कोरिया में खाने की सप्लाई कर चुका है। 2004 में सुनानी के दौरान उत्तर कोरिया ने 30,000 डॉलर की मदद की थी। लेकिन 2017 में उत्तर कोरिया के मिसाइल कार्यक्रम को लेकर जब संयुक्त राष्ट्र ने उत्तर कोरिया पर प्रतिबंध लगाए तो भारत ने उसके साथ होने वाले व्यापार पर लगभग पूरी तरह से रोक लगा दी।