अपनी बात को पुख्ता करने हेतु तथ्य रखते हुए स. रंधावा ने कहा कि मैसर्ज करनाल एग्री सीड्ज, गाँव -वैरोके, डेरा बाबा नानक गुरदासपुर का मालिक लक्की ढिल्लों तो 2017 में उनको मिला जबकि उसे लाइसेंस 2015 में अकाली सरकार के समय पर मिला था। इस फर्म की तरफ से पंजाब कृषि यूनिवर्सिटी लुधियाना गेट नंबर एक के सामने पड़ती मैसर्ज बराड़ सीड फार्म को धान की फसल पी.आर. 128 और पी.आर. 129 की सप्लाई करने का दोष है। यह दोष लग रहे हैं कि मैसर्ज बराड़ सीड फार्म ने किसानों को इन किस्मों के बीज बहुत महंगे दाम पर सप्लाई किये और इस सम्बन्धी लुधियाना में 11 मई 2020 को एफ.आई.आर. दर्ज हुई थी। सहकारिता और जेल मंत्री ने सवाल किया कि जब एक फर्म ने दूसरी फर्म को सप्लाई की, उस फर्म ने आगे बीज बेचा तो इसमें सुखजिन्दर सिंह रंधावा का नाम कैसे आ गया।
अन्य विवरण देते हुए स. रंधावा ने कहा कि बिल नंबर 1850, जो मैसर्ज बराड़ बीज फर्म के रिकार्ड की फाइलों की जांच दौरान पाया गया, बताया गया है कि लुधियाना से सम्बन्धित है न कि अमृतसर के साथ तो मेरा (सुखजिन्दर सिंह रंधावा का) नाम अकालियों ने कैसे इस मामले में घसीटा। यह भी जांच का विषय बनता है। कैबिनेट मंत्री ने कहा कि मैसर्ज करनाल सीड्ज के मालिक लक्की ढिल्लों को 17 सितम्बर 2015 को लाइसेंस नंबर 1102 जारी करके बीज बेचने का काम करने की इजाजत दी गई और यह लाइसेंस अकाली-भाजपा सरकार के कार्यकाल के दौरान ही 16 सितम्बर 2021 तक के लिए नवीनीकृत किया गया। इसके अलावा लक्की ढिल्लों अकाली नेता सुच्चा सिंह लंगाह के नजदीकियों में से एक है। इसके साथ ही पूर्व मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल ने लक्की ढिल्लों के पिता की मौत पर शोक पत्र भी लिखा था।
इन दोषों के अन्य राज खोलते हुए स. रंधावा ने कहा कि गुरदासपुर के गाँव धारोवाली के निवासी जोबनजीत सिंह के सीड सर्टीफिकेशन सहायक के तौर पर काम करने और उसके मैसर्ज करनाल एग्री सीड्ज के बीजों की जांच करने का सम्बन्ध है तो यह बात स्पष्ट है कि जोबनजीत सिंह गुरदासपुर आधारित इस फर्म के बीजों संबंधी कोई सर्टिफिकेट नहीं दे सकता था क्योंकि उसके पास यह करने का अधिकार नहीं है। उन्होंने कहा कि अगर कोई गाँव धारोवाली के साथ सम्बन्ध रखता है तो इसका मतलब यह नहीं कि वह व्यक्ति मुझे अच्छी तरह जानता होगा। कांग्रेसी नेता ने बिक्रम सिंह मजीठिया को चुनौती देते हुए कहा कि वह इस मामले में समयबद्ध जांच के लिए तैयार हैं परन्तु अकालियों को भी इस मामले में अपने कार्यकाल के दौरान हुई त्रुटियों की जिम्मेदारी कबूलने के लिए तैयार रहना चाहिए। अकाली नेता को सूझ-बूझ भरी पहुँच अपनाने की सलाह देते हुए स. रंधावा ने कहा कि ऐसे काल्पनिक हथकंडे अकालियों को अपना खोया हुआ आधार हासिल करने में मदद नहीं करेंगे।