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मुरादाबाद

Lockdown 3: साईकिल से ही लुधियाना से लखनऊ के लिए चल दिए दर्जन भर मजदूर, बोले भूखे मर जाते साहब

Highlights -लुधियाना से साइकिल से ही वापस गांव चल दिए -थकान मिटाने को रुका था मजदूरों का जत्था -बोले हालात हो गए थे बहुत खराब, अनाज और पैसे दोनों खत्म हो चुके थे

मुरादाबादMay 05, 2020 / 05:22 pm

jai prakash

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मुरादाबाद: कोरोना महामारी से निपटने को पूरी दुनिया के साथ देश में भी लॉक डाउन बढ़ता जा रहा है। अब तीसरे चरण का लॉक डाउन शुरू हो गया है जो 17 मई को खत्म होगा। लेकिन इसके बीच मजदूरों का इम्तेहान जबाब देता जा रहा है। भविष्य की अनहोनी देख वे लगातार पैदल या साइकिल से हजारों किलोमीटर की यात्रा करने पर मजबूर हैं। कुछ यही झलक शहर में भी हाइवे पर देखने मिली। यहां करीब आधा दर्जन परिवार लुधियाना से साइकिल से ही लखनऊ और आसपास के जिलों के लिए निकल पड़े। पूछने पर सिर्फ यही बोले अगर नहीं निकलते तो भूखे मर जाते साहब।

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काम-काज पूरी तरह हो गया ठप
लॉकडाउन के कारण कामकाज ठप होने की वजह से मजदूरों का पलायन जारी है। साइकिल पर सवार होकर लंबी लंबी यात्रा कर मजदूर हरियाणा से मुरादाबाद पहुंचे हैं। लखनऊ के रहने वाले अमन अपने गांव के 14 लोगों के साथ हरियाणा के जगाडरी में मजदूरी का काम करते थे, जो लॉक डाउन के कारण ठप है और आर्थिक संकट के कारण खाने की परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। ऐसे में वह साइकिल के सहारे अपने संगी साथियो के साथ लखनऊ अपनी मंजिल के रास्ते पर निकल पड़े। सात दिन के सफर के बाद अमन मुरादाबाद पहुंचे,रास्ते मे जो मिल गया उसे खाया,सभी लोगो का कहना था कि हालात भूखों मरने के हो गए थे इसलिए घर लौटने का इरादा कर लिया।

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थकान मिटाने को रुके थे
रास्ते के सफर की थकान को दूर करने के लिए हरियाणा से निकले ये सभी लोग कुछ देर के लिए थकान मिटाने के लिए मुरादाबाद रुके। अपनी व्यथा को बयां करते हुए इन लोगो ने बताया कि हरियाणा में मजदूरी का काम कर रहें थे। लॉक डाउन जैसे जैसे बढ़ रहा था राशन और पैसे खत्म हो रहे थे। किसी तरह कर कर के एक एक दिन काटा।खाने के लाले पड़ने लगे तो हम सभी ने अपने अपने घरों को जाने का निर्णय लिया। अमन ने बताया कि राशन न मिलने से भुखमरी के हालात बनने लगे थे, जिस कारण घर जाने का फैसला किया। पांच दिन से लगातार साइकिल चला कर सभी आज मुरादाबाद पहुंचे। अगले दो से तीन दिन में घर पहुंचने की उम्मीद है।

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उम्मीद में जिन्दा है
अमन और उसके साथी साइकिल में पैदल मार जिन्दगी की गाड़ी खींच रहे हैं, जिन्दगी की उम्मीद आधे रास्ते आधे पेट तो ले आई है। लेकिन घर पहुंचने के बाद जो एक चीज इनका पीछा नहीं छोड़ेगी वो है भूख। फ़िलहाल अमन और न जाने कितने अमन का सफ़र पैदल या यूँ ही जारी है।

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